कोहरा ओढ़े सुबह आयी
इन पेड़ों के दरमियान
मद्धम हवा बहने लगी
सिरहन बिखेरती यहाँ
रास्ते खामोश हो गए
सुकून में है आसमान
ठिठुर रही है साँसे
जिस्म के इस अलाव में
धड़क रहे दिल धीमे से
बोझिल हुई पलके खाव में
जुबाँ को प्यास नहीं
जेहेन भी है मीठे तनाव में
गर सुकून बाकी है कहीं
तो बस प्यार के आगोश में
इक चाय कि प्याली से
कहीं आते हैं जनाब होश में
गर्माता है लहू और अरमाँ
चुम्बक बन जाते है जोश में
~ भावार्थ ~
इन पेड़ों के दरमियान
मद्धम हवा बहने लगी
सिरहन बिखेरती यहाँ
रास्ते खामोश हो गए
सुकून में है आसमान
ठिठुर रही है साँसे
जिस्म के इस अलाव में
धड़क रहे दिल धीमे से
बोझिल हुई पलके खाव में
जुबाँ को प्यास नहीं
जेहेन भी है मीठे तनाव में
गर सुकून बाकी है कहीं
तो बस प्यार के आगोश में
इक चाय कि प्याली से
कहीं आते हैं जनाब होश में
गर्माता है लहू और अरमाँ
चुम्बक बन जाते है जोश में
~ भावार्थ ~
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