तरह तरह के वजूद
लेकर एक ही रूह
धुँधली सी हर राह
क्या खायिश क्या चाह
धागे से बुने उधड़ते
दिल के रिश्ते हज़ार
सुकून को है बैचैन
थक गए जगते नैन
बोझिल तपते दिन
शाम को ताके रैन
भावार्थ
१२/१/२०२०
लेकर एक ही रूह
धुँधली सी हर राह
क्या खायिश क्या चाह
धागे से बुने उधड़ते
दिल के रिश्ते हज़ार
सुकून को है बैचैन
थक गए जगते नैन
बोझिल तपते दिन
शाम को ताके रैन
भावार्थ
१२/१/२०२०
1 comment:
Nice!
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