माला फेरे तिलक लगाया लम्बी जटा बढ़ाता है
अंतर तेरे कुफर कटारी ये साहब नहीं मिलता है
जप तप सयंम साधना सब सुमिरन मैं नाहीं
माला फेरत जुग गया फिरा न मन का फेर
कर का मनका डार दे मन का मनका फेर
कबीर जपना काठ की क्या दिखलावे मोय
ह्रदय नाम न जपेगा तो यह जपनी क्या होय
माला फेरे तिलक लगाया लम्बी जटा बढ़ाता है
संत कबीर संग दास नारायण दरखत में फल फलता है
संत कबीर
अंतर तेरे कुफर कटारी ये साहब नहीं मिलता है
जप तप सयंम साधना सब सुमिरन मैं नाहीं
माला फेरत जुग गया फिरा न मन का फेर
कर का मनका डार दे मन का मनका फेर
कबीर जपना काठ की क्या दिखलावे मोय
ह्रदय नाम न जपेगा तो यह जपनी क्या होय
माला फेरे तिलक लगाया लम्बी जटा बढ़ाता है
संत कबीर संग दास नारायण दरखत में फल फलता है
संत कबीर
No comments:
Post a Comment