एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Saturday, January 27, 2018
Saturday, January 20, 2018
माला फेरे तिलक लगाया ....
माला फेरे तिलक लगाया लम्बी जटा बढ़ाता है
अंतर तेरे कुफर कटारी ये साहब नहीं मिलता है
जप तप सयंम साधना सब सुमिरन मैं नाहीं
माला फेरत जुग गया फिरा न मन का फेर
कर का मनका डार दे मन का मनका फेर
कबीर जपना काठ की क्या दिखलावे मोय
ह्रदय नाम न जपेगा तो यह जपनी क्या होय
माला फेरे तिलक लगाया लम्बी जटा बढ़ाता है
संत कबीर संग दास नारायण दरखत में फल फलता है
संत कबीर
अंतर तेरे कुफर कटारी ये साहब नहीं मिलता है
जप तप सयंम साधना सब सुमिरन मैं नाहीं
माला फेरत जुग गया फिरा न मन का फेर
कर का मनका डार दे मन का मनका फेर
कबीर जपना काठ की क्या दिखलावे मोय
ह्रदय नाम न जपेगा तो यह जपनी क्या होय
माला फेरे तिलक लगाया लम्बी जटा बढ़ाता है
संत कबीर संग दास नारायण दरखत में फल फलता है
संत कबीर
बुरा जो खोजन मैं चला बुरा न मिलया कोय
बुरा जो खोजन मैं चला बुरा न मिलया कोय
जो दिल खोजा आपना मुझसा बुरा न कोय
चाह गयी चिंता मिटी मनुआ बेपरवाह
जिनको कछु न चाहिए सो शाहन के शाह
ज्ञानी ध्यानी और सयंमी दाता सूर अनेक
जपिया तपिया बहुत हैं शीलवंत कोई एक
सुख का सागर शील है कोई न पावे थाह
शब्द बिना साधू नहीं द्रव्य बिना नहीं शाह
शीलवन्त निर्मल दशा पाँव पड़े चहुँ खूंट
कहे कबीर ता दास की आस करे बैकुंठ
संत कबीर
जो दिल खोजा आपना मुझसा बुरा न कोय
चाह गयी चिंता मिटी मनुआ बेपरवाह
जिनको कछु न चाहिए सो शाहन के शाह
ज्ञानी ध्यानी और सयंमी दाता सूर अनेक
जपिया तपिया बहुत हैं शीलवंत कोई एक
सुख का सागर शील है कोई न पावे थाह
शब्द बिना साधू नहीं द्रव्य बिना नहीं शाह
शीलवन्त निर्मल दशा पाँव पड़े चहुँ खूंट
कहे कबीर ता दास की आस करे बैकुंठ
संत कबीर
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