मुझको यकीं है सच कहती थी
जो भी अम्मी कहती थी
जब मेरे बचपन के दिन थे
चाँद में परियां रहती थी
एक ये दिन अपनों ने भी
हम से नाता तोड़ दिया
एक वो दिन जब पेड़ की साखें
बोझ हमारा सहती थी
जब मेरे बचपन के दिन थे
चाँद में पारियां रहती थी
एक दिन ये जब लाखों गम
और काल पड़ा है आंसूं का
एक वो दिन जब एक जरा सी
बात पे नदियां बहती थी
जब मेरे बचपन के दिन थे
चाँद में पारियां रहती थी
जावेद अख्तर
जो भी अम्मी कहती थी
जब मेरे बचपन के दिन थे
चाँद में परियां रहती थी
एक ये दिन अपनों ने भी
हम से नाता तोड़ दिया
एक वो दिन जब पेड़ की साखें
बोझ हमारा सहती थी
जब मेरे बचपन के दिन थे
चाँद में पारियां रहती थी
एक दिन ये जब लाखों गम
और काल पड़ा है आंसूं का
एक वो दिन जब एक जरा सी
बात पे नदियां बहती थी
जब मेरे बचपन के दिन थे
चाँद में पारियां रहती थी