एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Thursday, June 24, 2010
मेरी जिंदगी !!!
फिर चढ़े खुमार... फिर करूँ इजहार... फिर तुझे थाम लूं...
तुझमें सिमट कर... तुझसे लिपट कर... मैं ख़ुद को भुला दूं...
1 comment:
बहुत सुन्दर!!
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