हया उसकी रह गयी पीछे...
वो बढ़ गई सरहद की तरफ...
तोड़ के सब पहरे...
छोड़ के सब जेवर...
पैरहन उम्मीद का ओढ़े...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...
नजरो में काज़ल की कसक ...
माथे पे सिन्दूर की लकीर...
कसम की कच्ची डोर से बंधी...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...
हर एक घुले राग को लिए ...
हर एक सजे अलफ़ाज़ को लिए ...
सुनने वालो के हुजूम को देख...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...
ग़ज़ल मेरी जो अनसुनी थी इधर...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...
हया उसकी रह गयी पीछे...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...
....भावार्थ
2 comments:
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
when people think her to be a traitor ..you think about her desires and aspirations...this is amazing!!
hats off !!
you give new dimensions to the scope of poetry!!
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