सुखा पत्ता बन कर रह गयी सब ...
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
हवा का झोंका भर हूँ अब कहाँ समाऊँ ...
ख़ुद से खो कर तू ही बता अब कहाँ जाऊं...
बेबुनियाद बातें सो कौन सी बुनियाद बनाऊं...
सुखा पत्ता बन कर रही गयी सब...
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
वोह सुकून से लिखने की राहत...
दुनिया भूल कर कुछ सोचने की आदत...
रिश्तो को तोड़ कर जीने की चाहत...
सुखा पत्ता बन कर रही गयी सब...
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
उँगलियाँ कोसती है स्याही को मेरी...
स्याही कोसती है कलम की नौक को मेरी...
नौक कोसती है दबाती उँगलियों को मेरी...
सुखा पत्ता बन कर रही गयी सब....
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
भावार्थ
1 comment:
वोह सुकून से लिखने की राहत...
दुनिया भूल कर कुछ सोचने की आदत...
रिश्तो को तोड़ कर जीने की चाहत...nice lines ..!!
atlast kuch to likha aapne!!
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