खाबो को सिरहाने बिठा...
नींद ने जब लोरियां सुनायीं...
रात को फूंक से बिखेर...
अँधेरे ने जो कहानियां सुनायीं...
मुझे माँ याद आई...
भोली सी वो जाँ याद आई...
तन्हाई के बादल के सीने से...
बूँद एक एक जब छलकी...
मेरे वजूद की बेपनाह आह...
बिखरी परछाई से जो छलकी...
मुझे माँ याद आई...
भोली सी वो जाँ याद आई...
दर्द के उबाल सांचे में...
मेरे जो ढलते नज़र आने लगे ....
उम्र के दराज़ इकसार साए में...
मेरे जो बनते नज़र आने लगे ...
मुझे माँ याद आई....
भोली सी वो जाँ याद आई...
खायिशें की कड़ी जुड़ कर भी...
जब किसी रहगुज़र से न जुडी...
पाक रिश्ते की एक गाँठ भी जिंदगी में...
जब किसी अजनबी से न जुडी...
मुझे माँ याद आई...
भोली सी वो जाँ याद आई...
...भावार्थ
1 comment:
मुझे माँ याद आई...
भोली सी वो जाँ याद आई...
-भावुक कर गये!!
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