Thursday, January 31, 2008

झुंड के एक भेड़ ने प्रथा तोडी।

झुंड के एक भेड़ ने प्रथा तोडी।
खुद सोचूंगा, झुंड की राह छोडी।
भीड़ का सच जानूंगा अब तो।
यही सोच उसने अपनी सोच मोडी।

उसने देखा

जिंदगी का कंकाल
बड़ा विकराल
रूह हटा कर देखा।
बड़ा जल्जाल।

फिर सोचा

सोच प्रतिविम्ब है।
दुःख की, उस कंकाल की।
खुशनुमा चादर के भीतर
छुपी हाले बेहाल की।

झुंड में दुर्गन्ध है।
सोच सभी की बंद है।
इंसानियत से जीने वाले।
भीड़ में बचे बस चंद है।

झुंड में झूट है।
बर्बरता को छूट है।
अपने लत्ते खुद समेटो यहाँ।
अस्मिता की लूट है।

झुंड गणित पर चलता है।
सच कूटनी में पिसता है।
दो तिहाही मिल कर कह दे ।
तो खोटा सिक्का चलता है।

नायक झुटे, बाते झूटी।
महल हैं झुटे, साखें झूटी।
कहने को तो है झूट जेल में।
पर जेल की सारी सलाखें झूटी।

कौन है विदेशी कोई नहीं।
कौन है वहशी कोई नहीं।
पेर लुटा पड़ा है इंसान यहाँ।
कौन है दोषी कोई नहीं।

झुंड के जुर्म तो मांफ हैं।
उसकी छबी तो साफ है।
यही तो है झुंड का खेल।
जो झुंड कहे वही इन्साफ है।

थक कर भेड़ बोला ...

पेर क्यों सोचें।
सर दुखता सा है।
आत्म ज्ञान का चाबुक।
मुझे चुभता सा है।

एक अकेला क्या करेगा।
क्या चना अकेला भाड़ भरेगा।
अनजान मौत को मिलने से पहले।
वह भीड़ में बस साथ चलेगा।

क्यों ना फिर भेड़ बन जाएँ।
जहाँ जाये झुंड वहीं जाये।
अपने सपने छोड़ सभी ।
चलो गीत झुंड के ही गायें।

हाथ आकर लगा गया कोई !!!

हाथ आकर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई

लग गया इक मशीन में मैं
शहर में ले के आ गया कोई

मैं खड़ा था के पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई

यह सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई

ऐसी मंहगाई है के चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई

अब बोह अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई

वोह गए जब से ऐसा लगता है
छोटा मोटा खुदा गया कोई

मेरा बचपन भी साथ ले आया
गांव से जब भी आ गया कोई

Wednesday, January 30, 2008

आज रंगो को छूने का जी चाहता है।

आज रंगो को छूने को जी चाहता है।
फिर जिंदगी जीने को जी चाहता है।
जो होश में रह कर तो मिल नहीं पाए।
वही सपने सजाने को जी चाहता है।

आज रंगो को छूने का जी चाहता है।

आज बारिश बिछाने को जी चाहता है।
फिर जिंदगी जीने को जी चाहता है।
रेत की लपटें जला दे ना ख़ुशी को।
वह रिम झिम लाने को जी चाहता है।

आज रंगो को छूने का जी चाहता है।

आज हवा को पकड़ने को जी चाहता है।
फिर जिंदगी जीने को जी चाहता है।
छूट गए है जो हमसफ़र सारे
वो सफर शुरू करने को जी चाहता है।

आज रंगो को छूने का जी चाहता है।

आज दरिया समेटने को जी चाहता है।
फिर ज़िंदगी जीने को जी चाहता है।
तिनके तिनके से बनी यह जो जिंदगी।
वही तिनके बटोरने को जी चाहता है।

आज रंगो को छूने का जी चाहता है।
फिर ज़िंदगी जीने को जी चाहता है।

तुझे सब है पता है ना माँ !!!- प्रशुन जोशी

मैं कभी बतलाता नहीं
पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ
यूं तो मैं,दिखलाता नहीं
तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ
तुझे सब हैं पता, हैं न माँ
तुझे सब हैं पता,,मेरी माँ
भीड़ में यूं न छोडो मुझे
घर लॉट के भी आ ना पाऊँ माँ
भेज न इतना दूर मुज्क्को तू
याद भी तुझको आ ना पाऊँ माँ
क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ
क्या इतना बुरा मेरी माँ
जब भी कभी पापा मुझे
जो ज़ोर से झूला झुलाते हैं माँ
मेरी नज़र ढूंढें तुझे
सोचु यही तू आ के थामेगी माँ
उनसे मैं यह कहता नहीं
पर मैं सहम जाता हूँ माँ
चेहरे पे आना देता नहीं
दिल ही दिल में घबराता हूँ माँ
तुझे सब है पता है ना माँ
तुझे सब है पता मेरी माँ
मैं कभी बतलाता नहीं
पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ
यूं तो मैं,दिखलाता नहीं
तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ
तुझे सब हैं पता, हैं न माँ
तुझे सब हैं पता,,मेरी माँ

तुझे सब है पता है ना माँ -प्रशुन जोशी

Tuesday, January 29, 2008

तनहा सारे वही मैंने रिश्तों में संग देखे...!!!

युही मैंने जीवन के सारे रंग देखे।
कुछ अकेले कुछ सबके संग देखे।

सपने
हैं चमकीले से जैसे,जुगनुओं को हो काफिला।
कभी लाल हैं, कभी हरे, इनका ऐसा है सिलसिला
मुट्ठी में आकर भी निकल जाते हैं यह रेत के तरह .
बहरूपिया सपनो के मैंने ये ढंग देखे।

युही मैंने जीवन के सारे रंग देखे।
कुछ अकेले कुछ सबके संग देखे।

रिश्ते हैं डोर रेशमी , चमक दूर से आती है।
दो कौने हैं हर रिश्ते के, ढील दी नहीं जाती है।
ख़ुशी कि ख्वाइश में कभी दिल भी टूट जाते हैं।
तनहा सारे वही मैंने रिश्तों में संग देखे।

युही मैंने जीवन के सारे रंग देखे।
कुछ अकेले कुछ सबके संग देखे।

यादें है रिमझिम कि तरह , सावन का माह हो जैसे।
बीते कल में लौटना की , यह अकेली राह हो जैसे।
पल में आंसू भर देती हैं ये आखों कि डिबियों में
यादों के भी नमी भरे मैने रंग देखे।

युही मैंने जीवन के सारे रंग देखे।
कुछ अकेले कुछ सबके संग देखे।

Monday, January 28, 2008

ना जाने क्यों इस मोड़ पर आकर में कुछ भी पाना नहीं चाहता।

ना जाने क्यों इस मोड़ पर आकर में कुछ भी पाना नहीं चाहता।
रिश्ते जो बन गए है यूहीं क्यों उनको मैं अब निभाना नहीं चाहता।

अभी तो ख़ुशी के बस चार कदम ही चला है मेरा जीवन।
पता नहीं क्यों उस रास्ते पे मैं फिर वापस जाना नहीं चाहता।

ना जाने क्यों इस मोड़ पर आकर में कुछ भी पाना नहीं चाहता।
रिश्ते जो बन गए है यूहीं क्यों उनको मैं अब निभाना नहीं चाहता।


छुने को ऊँचे बादल पड़े हैं अभी , पाने को लाखों तारे।
पर मैं सोच के मोहपाश पे पड़ा क्यों अब उपर उठाना नहीं चाहता।

ना जाने क्यों इस मोड़ पर आकर में कुछ भी पाना नहीं चाहता।
रिश्ते जो बन गए है यूहीं क्यों उनको मैं अब निभाना नहीं चाहता।

अज्ञानता के बादल ही मुझे ले डूबेंगे लगता है।
ज्ञान के सागर मैं फिर भी मैं डुबकी क्यों लगना नहीं चाहता।

ना जाने क्यों इस मोड़ पर आकर में कुछ भी पाना नहीं चाहता।
रिश्ते जो बन गए है यूहीं क्यों उनको मैं अब निभाना नहीं चाहता।

जीत कि ख्वाइश में वजूद खो कर मैंने , हार कर हार से दोस्ती कर ली।

जीत कि ख्वाइश में वजूद खो कर मैंने , हार कर हार से दोस्ती कर ली।
दिन के शोर से मजबूर हो कर मैंने , रात के सन्नाटे से दोस्ती कर ली।
हर चौराहे पे अपनी मंजिल को बटोहा हैं मैंने
न मिली मंजिल तो फिर मैंने , उन्ही चौराहों से आख़िर मंजिले दोस्ती कर ली

काफिले इतने लंबे हो गए हैं कि हमसफ़र, छूट ने लगे हैं अब मुझसे।
हँसने कि चाहत में गुद-गुदी के सभी कौने , भरने लगे है अब गम से ।
जीने के भरम में जान गवां भैठा मैं नादाँ, क्यूँ अपने आप से मैंने ये दिल्लगी कर ली।
जीत कि ख्वाइश में वजूद खो कर मैंने , हार कर हार से दोस्ती कर ली।

हौसलों के भी आख़िर अरमान होते हैं, ना जाने क्यों भूल गाया था मैं ।
कोशिशों के भी अपने सरे पैमान होते है, ना जाने क्यों भूल गया था मैं ।
अब बस यह कोशिशें ही मुझको मंजिल सी लगती हैं
न मिलेगी अब मुझे मंजिल कभी शायद, यही सोच कर मैंने कोशिशों से दोस्ती कर ली।
जीत कि ख्वाइश में वजूद खो कर मैंने , हार कर हार से दोस्ती कर ली।

मैंने अपना पहला प्यार भुलाने कि कोशिश की है।

मैंने अपना पहला प्यार भुलाने कि कोशिश की है।
आज अपने आप को मिटने की कोशिश की है।

नींद आ जाये अब रात के आगोश में ऐ मेरे खुदा।
बंद आखों ने आज फिर वही सर फिरी कोशिस की है।

मैंने अपना पहला प्यार भुलाने कि कोशिश की है।
आज अपने आप को मिटने की कोशिश की है।

वह मुझमें और में उसमें हूँ कुछ इस कदर समाया।
कि आईने ने आज मुझे खुद पहचानने की कोशिश की है।

मैंने अपना पहला प्यार भुलाने कि कोशिश की है।
आज अपने आप को मिटने की कोशिश की है।

सुरूर उसका छा चूका है मेरी रूह पे आवारगी कि हद तक।
नशा आ जाये मुझको अंगूर कि बेटी ने फिर कोशिश की है।

मैंने अपना पहला प्यार भुलाने कि कोशिश की है।
आज अपने आप को मिटने की कोशिश की है।

भूल जाओ तुम उस अनकहे रिश्ते को शाकी।

भूल जाओ तुम उस अनकहे रिश्ते को शाकी।
बंदिशें इतनी कि चाह कर भी तुम्हे अब कभी ना याद करंगे।

क्यों लगता है तुमको कि बिना तेरे में सपने बुन पाऊँगा।
अपने सब अरमानों को आज वजूद से फैंक बाहर करंगे।

महलों के ख्वाब सब तेरे साथ देखे थे मैंने मेरे हमदम ।
अब अनजान गल्यिओं में खुद को हम आबाद करंगे।

नाम आएगा मेरा तो बस तेरे साथ ही आएगा वरना।
इस भीड़ में खुद के नाम को हम कहीं अब गुमनाम करंगे।

भूल जाओ तुम उस अनकहे रिश्ते को शाकी।

Tuesday, January 1, 2008

Phook De Re Phook De !!! : Gulzaar is back with another master piece

Song:Phook De Re phook De !!!
Music: Vishal Bhardwaj
Lyrics: Gulzaar

Background: This is a song written for the movie "No Smoking", Though No smoking is universal campaign, and its adverse effects are pervasive. This song is dedicated to the North Indians. It is typical piece of work, but Gulzaar in his "North Indian" local language, used extensively in Uttar Pradesh, Delhi and Madhya Pradesh have powered it with locale touch. Language resembles very much to "KHARI BOLI", a language once used by ancient poets such as "KABIRA' and "SURDAS". Lately there have been songs in the same language by the same poet for the movie called 'OMKARA", there it was the demand of the plot of the movie unlike the case with "NO Smoking"...

>>Peele Peele Se Jungle Mein Behta Dhuaan - 2
(Ghoont Ghoont Jal Raha Hoon, Pii Raha Hoon Pattiyaan
Aankhein Hai Dhuaan Dhuaan, Num Hai Saari Battiyaan) - 2

//It signifies the pensive mood of the actor, where Peele-Peele (Yellowish) signifies the death of the trees, and the yellowish is the color of the leaves of the Tree. Ghoont Ghoont signifies the agony of the protagonist, where he is feeling the addiction of getting smoked. And aroundhim is dim lights whicha re depcetion of harrowing sorrow.//
Aaspaas Kuchh Nahi, Ji Udaas Hai Jara
Dard Sabj Hai Abhi, Mujhko Raas Hai Jara

// He is dead alone, "aaspaas: Around", and "Ji: Mood/livliness" is out of the picture. and Pain is ints nascent stage. and he is really angry at himself//
Toh Phoonk De Re, Phoonk De, Phoonk De.... Re
Phoonk, Phoonk, Phoonk De Re, Phoonk De Re Phoonk..........

//This pain is pushing him to smoke and to blow out all the Pain, anguish, displeasure out of him//
Hayaat Phoonk De, Hawaas Phoonk De
Ke Saans Se Sila Huva Libaas Phoonk De

// Smoker is been urged to blow out all the castles and his feelig of being alive as he is not able to see any thing worthwhile, here smoke is representes as the the fabric that is been woven by the breath when perosn smoke, and now The smoker wants to blow it out.//

Phoonk, Phoonk, Phoonk De Re, Phoonk De Re Phoonk..........

Sar Chadhi Hai Khumaari, Aur Jamin Dolati Hai
Bejubaan Daastaan Yeh, Raatbhar Bolati Hain

//It is the stage when smoker is feeling dizziness out of the smoke. Khumari is the "feeling of being light", and Jamin dolti hai signifies the unconcious state of the smoker. And this chain of the smoking is been carried out through out the night.//

Lab Pe Jal Rahi Hain, Woh Baat Phook De
???? Raakh Phoonk De
Phoonk De Yeh Raakh Phoonk, Phoonk De Yeh Raakh Phoonk
Phoonk De Woh Baat Phoonk, Phoonk De
Phoonk, Phoonk, Phoonk De Re, Phoonk De Re Phoonk..........

// So out of the frustration smoker wants to blow out the complete bitterness out of him, and the "BAAT" the mai reson of his being disturbed, he wants to get relieved of that by smoking.//

Jab Nasha Tutataa Hai, Kitne Tukade Gire ????
Hosh Chunane Lage Hum, Hum Bhi Kya Sar Phire Hain
Lab Pe Jal Rahi Hain, Woh Baat Phook De
???? Raakh Phoonk De

// And now smoker is getting out of the dizziness caused by the smoking, but he curse himself , saying that he msut not come out of the previous state, as state of being concious would make him sad. So he carry on with another round of smoking//

Phoonk De Yeh Raakh Phoonk, Phoonk De Yeh Raakh Phoonk
Phoonk De Woh Baat Phoonk, Phoonk De
Phoonk, Phoonk, Phoonk De Re, Phoonk De Re Phoonk..........
Hayaat Phoonk De, Hawaas Phoonk De
Ke Saans Se Sila Huva Libaas Phoonk De
Phoonk, Phoonk, Phoonk De Re, Phoonk De Re Phoonk..........
Hayaat Phoonk De (Phoonk, Phoonk, Phoonk De Re)
Hawaas Phoonk De (Phoonk, Phoonk, Phoonk De Re)
Ke Saans Se Sila Huva Libaas Phoonk De - 3
Phoonk, Phoonk, Phoonk De Re, Phoonk De Re Phoonk.......
...


Vocabulary
Phoonk : Blowing out, usually used in the Hindi language to set fire, or at times to blow the breath out.
Libaas(It is an Urdu word): Meaning Clothes, and its underneath meaning carries the way also in which the clothers are put on. So Libaas is more of the Style of the clothing.
Raakh: It is agian an urdu word, means Ashes
Hayaat: It is agia an urdu word for the Fort, or Palace. There is a chain of hotels in India with the same name.
Hawaas: Another Urdu word for the "feeling of being existing". It is norally used with the word "HOSH_HAWAAS"...that menas the feeling of being alive, or in being in ones senses.
Pattiyan: It means Leaves. here its contextual meaning is for SMOKING PIPIES. In India smoking pipes are ade up of Leaves, known as BEEDI. So by blowing out Pattiyan, means get smoked.
Battiyan: It meand Light usually bulbs. Lightening.
Ghoont: bout, or a Sip of nay liquid (here it means Slowly Slowly)