धीरे धीरे रे मना धीरे से सब कछु होये
माली सींचे सौ घड़ा ऋतू आये फल होये
रुखा सूखा खाय के ठंडा पानी पी
देख परायी चुपड़ी मत ललचावे जी
करे बुराई और सुख चाहे कैसे पावे कोय
बोके पेड़ बबूल का आम कहाँ से होये
सुखिया ढूढ़त मैं फिरूं सुखिया मिले न कोय
जाके आगे दुःख कहूँ पहिले सोचे फिर रोये
कबीर
माली सींचे सौ घड़ा ऋतू आये फल होये
रुखा सूखा खाय के ठंडा पानी पी
देख परायी चुपड़ी मत ललचावे जी
करे बुराई और सुख चाहे कैसे पावे कोय
बोके पेड़ बबूल का आम कहाँ से होये
सुखिया ढूढ़त मैं फिरूं सुखिया मिले न कोय
जाके आगे दुःख कहूँ पहिले सोचे फिर रोये
कबीर