Monday, March 28, 2016

"मैं" कैद में हूँ "खुद" के पिंजरे में

"मैं" कैद में हूँ "खुद" के पिंजरे में 
जूनून है आज़ादी का मगर हौंसला ज़रा कम है 

"मैं" कैद में हूँ "खुद" के पिंजरे में 
पिंजरे में युँ तो ऐश-ओ-आराम है सब के सब 
मगर नहीं है तो बस आज़ादी का सुकून 
इसकी हर एक ईंट कितने उन्माद से रखी मैंने 
सोच कर कि दर्द से निजात मिले शायद 
मगर ये हो न सका , दर्द मेरा मिट न सका 

"मैं" कैद में हूँ "खुद" के पिंजरे में 
लोग कहते हैं क्यों तुम बाहर नहीं आ जाते 
क्यूँ  गुमनाम से बने रहने में खुश हो तुम 
क्यों आज़ादी की परवाज़ नहीं भरते
बस  जरा सा होंसला क्यूँ नहीं करते तुम 
"मैं" कैद में हूँ "खुद" के पिंजरे में 

"मैं" कैद में हूँ "खुद" के पिंजरे में 
जिंदगी को एक हसीं आगाज़ समझ बैठा 
इस पिंजरे को शायद "खुद" मान लिया मैंने  
और मौत को मनहूस अंजाम समझ बैठा 
"मैं" "खुदा" से दूर हूँ "खुद" की सलाखों में 

"मैं" कैद में हूँ "खुद" के पिंजरे में 

भावार्थ 
२८/०३/२०१६ 





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