मृग तृष्णा मिटाये न मिटे
मृग तृष्णा मिटाये न मिटे
बोध कि गगरी आधी है
कर्म कि गठरी लादी है
बदरी अजान की छटाये न छटे
मृग तृष्णा मिटाये न मिटे
अहम् का बिछुआ काटें है
अविनाशी से हमको बांटे हैं
माया की धुंध हटाये न हटे
मृग तृष्णा मिटाये न मिटे
तू दीपक और सब है अँधेरा
तू आनंद सब दर्द बसेरा
आसक्ति ये घटाए न घटे
मृग तृष्णा मिटाये न मिटे
ज्यूँ कांच भुवन आकाश बसाया
त्यूँ सचिदानंद त्रि-शरीर समाया
वही सत नाम रटाये न रटे
मृग तृष्णा मिटाये न मिटे
~ भावार्थ ~
मृग तृष्णा मिटाये न मिटे
बोध कि गगरी आधी है
कर्म कि गठरी लादी है
बदरी अजान की छटाये न छटे
मृग तृष्णा मिटाये न मिटे
अहम् का बिछुआ काटें है
अविनाशी से हमको बांटे हैं
माया की धुंध हटाये न हटे
मृग तृष्णा मिटाये न मिटे
तू दीपक और सब है अँधेरा
तू आनंद सब दर्द बसेरा
आसक्ति ये घटाए न घटे
मृग तृष्णा मिटाये न मिटे
ज्यूँ कांच भुवन आकाश बसाया
त्यूँ सचिदानंद त्रि-शरीर समाया
वही सत नाम रटाये न रटे
मृग तृष्णा मिटाये न मिटे
~ भावार्थ ~
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