आज रौशनी तलाशते तलाशते
सूरज दूर तक निकल आया
उस फलक पर आसमां बेहोश पड़ा था
हवा सांस नहीं ले पा रही थी
और समंदर कई रोज के प्यासे थे
एक बहरे से पुछा तो उसका गूंगा दोस्त बोला
"सर" ये कलियुग का आखरी पड़ाव है
यहाँ भिखारी अमीर और दयालु गरीब हैं
जो विद्वान दीख पड़ते हैं असल में विक्षिप्त हैं
और जो अर्धविक्षिप्त दीखते हैं वही पंडित हैं
हया अब नारी का गहना नहीं कमजोर कि निशानी है
सच्चाई गर प्रजा है तो राजा बेईमानी है
यहाँ शीशे के आर पार नहीं दीखता
और आईना कोई और चेहरा दिखाता है
पेड़ और अजान रोज कोसों चलते हैं
और लोग है कि टस से मस नहीं होते
शिक्षा किताबों में कैद है
और जेहेन पे अँधेरा बेहिसाब है
जनाब ये कलियुग का आखरी पड़ाव है
~ भावार्थ~
सूरज दूर तक निकल आया
उस फलक पर आसमां बेहोश पड़ा था
हवा सांस नहीं ले पा रही थी
और समंदर कई रोज के प्यासे थे
एक बहरे से पुछा तो उसका गूंगा दोस्त बोला
"सर" ये कलियुग का आखरी पड़ाव है
यहाँ भिखारी अमीर और दयालु गरीब हैं
जो विद्वान दीख पड़ते हैं असल में विक्षिप्त हैं
और जो अर्धविक्षिप्त दीखते हैं वही पंडित हैं
हया अब नारी का गहना नहीं कमजोर कि निशानी है
सच्चाई गर प्रजा है तो राजा बेईमानी है
यहाँ शीशे के आर पार नहीं दीखता
और आईना कोई और चेहरा दिखाता है
पेड़ और अजान रोज कोसों चलते हैं
और लोग है कि टस से मस नहीं होते
शिक्षा किताबों में कैद है
और जेहेन पे अँधेरा बेहिसाब है
जनाब ये कलियुग का आखरी पड़ाव है
~ भावार्थ~
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