वीराने शहर में फिरती
शख्शियत मेरी बनकर आवारा
अपने नसीब का खयाल फ़िज़ूल है
जब वक़्त हो खुद का आवारा
तन्हाई की दुशाला ओढ़े सड़को के सीने पे
मेरे बेहोश लड़खड़ाते कदम मंजिल को
बढ़ रहे हैं बनकर आवारा
अपने नसीब का का खयाल फ़िज़ूल है
जब वक़्त हो खुद का आवारा
शख्शियत मेरी बनकर आवारा
अपने नसीब का खयाल फ़िज़ूल है
जब वक़्त हो खुद का आवारा
मेरे बेहोश लड़खड़ाते कदम मंजिल को
बढ़ रहे हैं बनकर आवारा
अपने नसीब का का खयाल फ़िज़ूल है
जब वक़्त हो खुद का आवारा
रास्तो के कंधे पे चमकते लेम्पपोस्ट
जगमगाते हैं कभी कभी जैसे
मदहोश फिरते जुगनू आवारा
अपने नसीब का का खयाल फ़िज़ूल है
जब वक़्त हो खुद का आवारा
भावार्थ
२४ नवंबर २०१३
जब वक़्त हो खुद का आवारा
भावार्थ
२४ नवंबर २०१३