कई दिन भूखे रहने के बाद जब...
अन्ना में सोचने की सामर्थ्य न रही...
जब भीड़ की चीख उससे सुनी न गयी...
जब लगा सरकारी रुपी भेंस बहरी हो गयी...
अन्ना निकल पड़ा अपना इमाँ लेके...
बाज़ार में जिसे लोग मंडी-ए-इमान कहते हैं...
खरीदने वाले हजार्रों थे मगर कोई बेचने वाला न था...
सफ़ेद रेशमी पोशाकों में...
ऊँची कुर्सियों के गलियारिओं में...
खरीदने को जैसे होड़ लगी हो...
कहाँ मिलता है कोहिनूर-ए-इमाँ इस जहां में...
बचा ही कहाँ है इमान आज कल...
मगर इफ्तिहार में मगरूर थे सब के सब...
अन्ना वहां से भूखा लौट गया...
अनशन का दसवां दिन...