Friday, August 26, 2011

मंडी-ए-इमा !!!

कई दिन भूखे रहने के बाद जब...
अन्ना में सोचने की सामर्थ्य न रही...
जब भीड़ की चीख उससे सुनी न गयी...
जब लगा सरकारी रुपी भेंस बहरी हो गयी...
अन्ना निकल पड़ा अपना इमाँ लेके...
बाज़ार में जिसे लोग मंडी-ए-इमान कहते हैं...
खरीदने वाले हजार्रों थे मगर कोई बेचने वाला न था...
सफ़ेद रेशमी पोशाकों में...
ऊँची कुर्सियों के गलियारिओं में...
खरीदने को जैसे होड़ लगी हो...
कहाँ मिलता है कोहिनूर-ए-इमाँ इस जहां में...
बचा ही कहाँ है इमान आज कल...
मगर इफ्तिहार में मगरूर थे सब के सब...
अन्ना वहां से भूखा लौट गया...

अनशन का दसवां दिन...


Friday, August 19, 2011

इसे सिर्फ आग-ए-इन्कलाब कहिये...!!!

न सिर्फ इसे आह की  हवा कहिये...
न सिर्फ इसे चाक-ए-दवा कहिये...
जो उठ रहा है ये धुआं इर्द गिर्द...
इसे सिर्फ आग-ए-इन्कलाब कहिये...

आज हुकुमरान की कैद में है आज़ादी...
खुले घूमते है कातिल, जेल में है खादी...
अब तो दिल बहलाने को फहराते है तिरंगा ये...
चंद मुट्ठियों ने मसली है करोड़ों कीआबादी...

इधर लहू उबला तो उधर  जमा सा है...
इधर जोश तो उधर ग़मगीन शमा सा है...
आज सडको पे कदमो का जाम है लगा ...
इधर शेर उमड़े, उधर चूहों का झुण्ड जमा सा है...

आज है इतिहास को दोहराने की तयारी...
मशाल बन कर उठेगी ये चिंगारी..
हर उम्र शामिल है इस इन्कलाब  में...
नौ जवां कंधे पे आई बूढ़े अन्ना की सवारी ...

भावार्थ 

Sunday, August 7, 2011

इन्तिशार !!!

कभी जुमूद  कभी  सिर्फ  इन्तिशार  सा  है 
जहां  को  अपनी  तबाही  का  इन्तिज़ार  सा  है 
मनु  की  मछली  न  कश्ती -ऐ -नूह  और  ये  फिजा 
के  कतरे  कतरे  में  तूफ़ान  बे -करार  सा  है 
मैं किसको  अपने  गरीबां  के  चाक  दिखलाऊँ 
के  आज  दामन -ए -यजदान  भी  तार -तार  सा  है 
सजा -संवार  के  जिसको  हज़ार  नाज़  किये 
उसी  पर  खालिक -ए -कुनैन  शर्म -सार  सा  है 
सब  अपने  पाँव  पे  रख -रख  के  पाँव  चलते  हैं 
खुद  अपने  काँधे  पैर  हर  आदमी  सवार  सा  है 
जिसे  पुकारिए  मिलता  है  खान्दर  से  जवाब 
जिसे  भी  देखिये  माजी  के  इश्तेहार  सा  है 
हुई  तो  कैसे  बयाबान  में  आ  के  शाम हुई 
के  जो  मज़ार  यहाँ  है , मेरा  मज़ार  सा  है 
कोई  तो  सूद  चुकाए , कोई  तो  जिम्मा  ले 
उस  इन्किलाब  का , जो  आज  तक  उधार  सा  है 
कैफ़ी आज़मी !!!