आज उस खाब को दो साल हो गए...
जिसे मैंने बीते कल में देखा था...
वो खाब पंख पसारे मेरे जहाँ में ....
ऐसे उड़ा मनो रंग बिखेर रहा हो..
जैसे बाती बन के तारे टिम टिमा रहे हो अमावस में..
जैसे आगोश में मदहोशी सिमट रही हो...
जैसे बिखरी कड़ी को सही कड़ी मिल गयी हो..
आज दो साल हो गये तुमको ...
...भावार्थ
जिसे मैंने बीते कल में देखा था...
वो खाब पंख पसारे मेरे जहाँ में ....
ऐसे उड़ा मनो रंग बिखेर रहा हो..
जैसे बाती बन के तारे टिम टिमा रहे हो अमावस में..
जैसे आगोश में मदहोशी सिमट रही हो...
जैसे बिखरी कड़ी को सही कड़ी मिल गयी हो..
आज दो साल हो गये तुमको ...
...भावार्थ
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