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तुमने आँखे मूंदी ही थी कि बस...
किसी ने नींद को पानी दे दिया ...
रात के बगीचे की जेहेन कि क्यारी में ...
खाब उग आये नयी कोपलो कि तरह...
तुम्हारी अंगड़ाईयों ने उनको बेकरारी दी...
पलकों ने छाव तो अलको ने तबस्सुम दिया...
साँसों ने खुश्बू और लबो ने अदाएं बख्शी...
युही सजे सावरे से खाब इठलाते रहे रात भर...
तकिये के इर्द गिर्द...
जेहेन की गिरहो में...
...भावार्थ