एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Sunday, June 27, 2010
तुम नींद में !!!
तुमने आँखे मूंदी ही थी कि बस...
किसी ने नींद को पानी दे दिया ...
रात के बगीचे की जेहेन कि क्यारी में ...
खाब उग आये नयी कोपलो कि तरह...
तुम्हारी अंगड़ाईयों ने उनको बेकरारी दी...
पलकों ने छाव तो अलको ने तबस्सुम दिया...
साँसों ने खुश्बू और लबो ने अदाएं बख्शी...
युही सजे सावरे से खाब इठलाते रहे रात भर...
तकिये के इर्द गिर्द...
जेहेन की गिरहो में...
...भावार्थ
Thursday, June 24, 2010
मेरी जिंदगी !!!
फिर चढ़े खुमार...
फिर करूँ इजहार...
फिर तुझे थाम लूं...
तुझमें सिमट कर...
तुझसे लिपट कर...
मैं ख़ुद को भुला दूं...
मेरी जिंदगी...
मेरी जिंदगी...
फिर करूँ इजहार...
फिर तुझे थाम लूं...
तुझमें सिमट कर...
तुझसे लिपट कर...
मैं ख़ुद को भुला दूं...
मेरी जिंदगी...
मेरी जिंदगी...
Friday, June 11, 2010
कौन कहता है भगवान् ...!!!!
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
कौन कहता है भगवान आते नहीं...
तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं...
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
कौन कहता है भगवान् सोते नहीं...
माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं...
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
कौन कहता है भगवान् खाते नहीं...
बेर शबरी के जैसे खिलाते नहीं...
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
कौन कहता है भगवान् नाचते नहीं...
तुम गोपियों के जैसे नचाते नहीं...
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
....भजन
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
कौन कहता है भगवान आते नहीं...
तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं...
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
कौन कहता है भगवान् सोते नहीं...
माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं...
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
कौन कहता है भगवान् खाते नहीं...
बेर शबरी के जैसे खिलाते नहीं...
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
कौन कहता है भगवान् नाचते नहीं...
तुम गोपियों के जैसे नचाते नहीं...
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
....भजन
Friday, June 4, 2010
उडती लकीरें !!!
रेगिस्तान ने आसाम की तरफ देखा...
तो बादलों पे रेत जम गयी...
हवा के दांत किर-किरे हो गए...
तारों को कुछ दिखाई नहीं देता...
सूरज चाँद सा फीका नज़र आता है...
मगर ये जो लकीरें सी उडती नज़र आती है...
ये क्या हैं...?
कहीं सरहद तो नहीं उड़ आई कहीं...
तपते धधकते रेत के साथ ...
साल बीत गए मगर बंटवारे की लकीर...
उतनी की उतनी ही गहरी रही...
रेत उड़ता रहा इनके इर्द गिद ...
पर बिलकुल बेअसर जहर की तरह...
शायद ये तूफ़ान ही मिटा दे इन लकीरों को ....
जमी से मिटा कर न सही ...
हवा में उड़ा कर ही सही ...
...भावार्थ
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