अपनी नर्म बाहों मैं मुझको सुला जिंदगी...
हवा के हल्के झोंको से मुझको झुला जिंदगी...
अर्श मेरा हर बार बदले हैं ज़माने ने यु तो...
मेरे नाम से भी कभी मुझको बुला जिंदगी...
सदियों से काँधे को तरसती रही मेरी आँखे...
दर्द बह जाएँ सारे इतना मुझको रुला जिंदगी...
भीड़ में चीखती रही मेरे नाम की आवाजें...
अब अपना कह के तू मुझको बुला जिंदगी...
अपनी नर्म बाहों मैं मुझको सुला जिंदगी...
हवा के हल्के झोंको से मुझको झुला जिंदगी...
...भावार्थ
3 comments:
kahan milta hai sukoon?
kahan millti hai rahat ?
ab to lab khol ..
pata bata zindagi!!!
वाह! बहुत बढ़िया!
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
राम दी चिडिया राम दी खेत भक्खेा चिडि़या भर भर पेट का भावार्थ लिखिये
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