Thursday, September 9, 2010

बस यही गम है...

में जब भी रूठा था कभी...
उसने हँस के मना लिया था मुझे...
मूह फेर के जो दूर जा बैठा...
पास उसने बुला लिया था मुझे...
सालों तक चला सिलसिला...
उसको मुझसे न कभी हुआ गिला...
पर आज में सुबह से तुनक के बैठा हूँ...
यही सोच कर की आएगी मेरे पास...
मुस्कुराएगी, गुनगुनायेगी ....
मगर वो नहीं आई...
सुबह चल कर शाम तक पहुंची...
रात के किनारे पे मैंने उसे छुआ ...
तो उसकी आँख फिर नहीं खुली...
कोसता रह गया में ख़ुद को...
पुरे दिन वो मेरे साथ रही ....
और में उससे कुछ अलफ़ाज़ भी न कह सका...
ये भी नहीं कह सका में रूठा नहीं था...
और उससे कितनी मोहब्बत है मुझे...
बस यही गम है...


...भावार्थ

Tuesday, September 7, 2010

अँधेरे सा शख्श !!!

मेरे साथ एक शख्श रहता है...
जो अँधेरे सा है हू ब हू ...
शायद डर है उसे उजाले से...
जो उसकी खौफनाक सीरत को...
बेपर्दा न कर दे...
रिश्तो की तह को टटोलता...
दिमाग को जुबा से बिना तोले बोलता...
अँधेरे सा वो शख्श ...
ज़माने के बनाये कायदों को किनारे रख...
सपनो की नाव को हकीकत में बदल...
तैरता रहता है जिंदगी के समंदर में...
वो अँधेरे सा शख्श ....

...भावार्थ