नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही
न तन में खून फ़राहमन अश्क़ आँखों में
नमाज-ए-शौक तो वाजिब है बे वजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही
किसी तरह तो जमे बज़्म मयकदे वालो
नहीं जो वादा-ओ- सागर तो हाओ-हू ही सही
गर इंतज़ार कठिन है तो जब तलक-ए- दिल
किसी के वादा-ए -फ़र्दा की गुफ्तगू की सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही
दयार-इ-गैर में महरम अगर नहीं कोई
तो फैज़ जिक्र-इ-वतन अपने रू-ब -रू ही सही
नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही
फैज़ अहमद फैज़
नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही
न तन में खून फ़राहमन अश्क़ आँखों में
नमाज-ए-शौक तो वाजिब है बे वजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही
किसी तरह तो जमे बज़्म मयकदे वालो
नहीं जो वादा-ओ- सागर तो हाओ-हू ही सही
गर इंतज़ार कठिन है तो जब तलक-ए- दिल
किसी के वादा-ए -फ़र्दा की गुफ्तगू की सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही
दयार-इ-गैर में महरम अगर नहीं कोई
तो फैज़ जिक्र-इ-वतन अपने रू-ब -रू ही सही
नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही
फैज़ अहमद फैज़