जिस्म की खायिश लिए जिस्म फिरते हैं
इक बदहवासी सी लिए होश फिरते हैं
ताल्लुकात जो न दुनिया को दिखाई दिए
अंगारे ऐसे ही लिए राख के गुबार फिरते हैं
सुहाग का सिदूर लाली कब की खो चूका
लत-ओ-नशा लिए यहाँ जिस्म फिरते हैं
तब्दील हम न हुए ये जमाना हुआ भाव
आरजू मौत की इश्क में हम लिए फिरते हैं
जिस्म की खायिश लिए जिस्म फिरते हैं
इक बदहवासी सी लिए होश फिरते हैं
भावार्थ
इक बदहवासी सी लिए होश फिरते हैं
ताल्लुकात जो न दुनिया को दिखाई दिए
अंगारे ऐसे ही लिए राख के गुबार फिरते हैं
सुहाग का सिदूर लाली कब की खो चूका
लत-ओ-नशा लिए यहाँ जिस्म फिरते हैं
तब्दील हम न हुए ये जमाना हुआ भाव
आरजू मौत की इश्क में हम लिए फिरते हैं
जिस्म की खायिश लिए जिस्म फिरते हैं
इक बदहवासी सी लिए होश फिरते हैं
भावार्थ