अपनी नर्म बाहों मैं मुझको सुला जिंदगी...
हवा के हल्के झोंको से मुझको झुला जिंदगी...
अर्श मेरा हर बार बदले हैं ज़माने ने यु तो...
मेरे नाम से भी कभी मुझको बुला जिंदगी...
सदियों से काँधे को तरसती रही मेरी आँखे...
दर्द बह जाएँ सारे इतना मुझको रुला जिंदगी...
भीड़ में चीखती रही मेरे नाम की आवाजें...
अब अपना कह के तू मुझको बुला जिंदगी...
अपनी नर्म बाहों मैं मुझको सुला जिंदगी...
हवा के हल्के झोंको से मुझको झुला जिंदगी...
...भावार्थ
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Tuesday, March 23, 2010
Friday, March 5, 2010
सुखा पत्ता !!!
सुखा पत्ता बन कर रह गयी सब ...
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
हवा का झोंका भर हूँ अब कहाँ समाऊँ ...
ख़ुद से खो कर तू ही बता अब कहाँ जाऊं...
बेबुनियाद बातें सो कौन सी बुनियाद बनाऊं...
सुखा पत्ता बन कर रही गयी सब...
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
वोह सुकून से लिखने की राहत...
दुनिया भूल कर कुछ सोचने की आदत...
रिश्तो को तोड़ कर जीने की चाहत...
सुखा पत्ता बन कर रही गयी सब...
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
उँगलियाँ कोसती है स्याही को मेरी...
स्याही कोसती है कलम की नौक को मेरी...
नौक कोसती है दबाती उँगलियों को मेरी...
सुखा पत्ता बन कर रही गयी सब....
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
भावार्थ
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
हवा का झोंका भर हूँ अब कहाँ समाऊँ ...
ख़ुद से खो कर तू ही बता अब कहाँ जाऊं...
बेबुनियाद बातें सो कौन सी बुनियाद बनाऊं...
सुखा पत्ता बन कर रही गयी सब...
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
वोह सुकून से लिखने की राहत...
दुनिया भूल कर कुछ सोचने की आदत...
रिश्तो को तोड़ कर जीने की चाहत...
सुखा पत्ता बन कर रही गयी सब...
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
उँगलियाँ कोसती है स्याही को मेरी...
स्याही कोसती है कलम की नौक को मेरी...
नौक कोसती है दबाती उँगलियों को मेरी...
सुखा पत्ता बन कर रही गयी सब....
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
भावार्थ
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