Sunday, July 31, 2011

शिवालय की रौशनी !!!

उधर रात की बाँहों में अँधेरा बढ़ रहा था...
और इधर मंजिल को  देखने की चाहत...
उम्मीद के दो पेरों पे हौसले का धड लिए... 
मैं रौशनी तलाशने को निकल पड़ा...

सर्द हवा चल रही रही...
और में काँप रहा था...
तभी हवा ने शिवालय  का...
घंटा बजा कर मुझे चौंका दिया...

में थका हुआ था...
उसी पत्थर की पनाहों में जा बैठा... 
मेरे आंसू शायद उसे अँधेरे में दिख गए...
शायद इसी लिए पूजते हैं उसे  लोग...

अजूबा ही था की सर्द रात में बादल गरजे...
पानी बरसा और बिजली चमक पड़ी...
और मेरी रौशनी की तलाश ख़त्म हुई...
उस पत्थर पे उस शिवालय पे...

भावार्थ...