Friday, June 24, 2016

ये जब्र भी देखा है तारीख की नज़रों ने

ये जब्र भी देखा है तारीख की नज़रों ने
लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई 

शिव कुमार "बटालवी"

थम थम जा वफ़ा की डगर

थम थम जा वफ़ा की डगर 
जो मंजिल इश्क़ में  पानी है 
रूह तेरी ये मेरी हो जाए 
मोहब्बत की  ये निशानी है 

थम थम जा वफ़ा की डगर 
जो मंजिल मोहब्बत की पानी है 

दो पल का ये अफसाना 
कुछ लम्हों की ये कहानी है 
जुड़ने बिछुड़ने का आलम 
इतनी ही तो जिंदगानी है 

थम थम जा वफ़ा की डगर 
जो मंजिल मोहब्बत की पानी है 

भावार्थ 
२६/०६/२०१६ 


झुकी नज़रों से यूँ तो मेरी हया बयाँ होती है

झुकी नज़रों से यूँ तो मेरी हया बयाँ होती है 
वो उठें तो कुछ पानेे की चाह बेइन्तेआह् होती है

यु तो मेरे वजूद की कई हिस्से मौजूद हैं इर्द गिर्द 
मगर हस्ती मेरी फिर भी गुमशुदा सरेराह होती है 

दर्द के तिनको से सजा है मेरा मखमली एहसास 
आंसू से रात और आह से हर एक सुबह होती है 

सोचती हूँ मुझे मेरे अक्स से कब रिहाई मिलेगी 
खुले आसमान में भी मेरी कैद बेपनाह होती है 


भावार्थ
२५/०६/२०१६ 



Saturday, June 11, 2016

कोई ढूढ़ता है मेरे होने का निशाँ ...

कोई ढूढ़ता है मेरे होने का निशाँ
कोई ढूढ़ता है मेरे होने का  जहाँ
उसमें  है मुझसा  ही अक्स
मुझमें रहता है वही शख्श

कोई ढूढ़ता है मेरे होने का निशाँ ...

मिटटी में है जो जान वो मैं हूँ
दुनिया में है जो इंसान वो मैं  हूँ
कायनात में है बस मेरा ही रक्स
मुझमें में रहता है वही शख्श

कोई ढूढ़ता है मेरे होने का निशाँ ...

तीरगी के अँधेरे में नूर वो मैं हूँ
मोहब्बत में है सुरूर वो में हूँ
हर एक  में है मेरा ही नक्स
मुझमें रहता है वही शख्श

कोई ढूढ़ता है मेरे होने का निशाँ ...
कोई ढूढ़ता है मेरे होने का  जहाँ

भावार्थ
११/०६/२०१६






Wednesday, June 8, 2016

जेहन नहीं दिल बोलता है आदमी सच्चा ही होगा

हर तरफ दुश्मन है उसके आदमी अच्छा ही होगा
जेहन  नहीं  दिल बोलता है आदमी सच्चा ही होगा
भावार्थ  !!!