Thursday, December 31, 2015

खुद से वाकिफ

माफ़ करना इस दुनिया का अभी इल्म नहीं है मुझे
अभी सिलसिला शुरू हुआ  है खुद से वाकिफ होने का.... 

देर तक सोने से बेहतर है देर तक जागना
हर एक खाब जो देखा मुझको याद रह गया


भावार्थ
०१/०१/२०१६

ग़ालिब का एहसास !!!

ग़ालिब का एहसास !!!

हर संग जहाँ है हर्फ़नुमा
अलफ़ाज़ घुले हैं गारे  में
नज़्म सी बसती  है हर जर्रे में
ग़ालिब की हवेली में

सुर्ख स्याही के छींटे कौनो में
अशरारों के निशाँ दीवारों पे
अब तक हैं मौजूद ज्यूँ के त्यूँ
ग़ालिब की हवेली में

नौशा के क़दमों की आहट
छत पे चिपका रौशनी का धुआं  
महफूज़ है खजाने की तरह
ग़ालिब की हवेली में

कौन कहता है ग़ालिब अब नहीं है
असद बनकर नौशा बनकर
वो हर एक ग़ज़ल में  जिन्दा है
ग़ालिब की हवेली में


भावार्थ...
०१/०१/२०१६
ग़ालिब का एहसास

ग़ालिब के हवेली , बल्ली मारां चांदनी चौक 
दिल्ली ६ 









Wednesday, December 30, 2015

टटोलिये मत

टटोलिये मत इस कलजुग के दरवेशों को
हर एक यहाँ बादशाहत का खाब रखता है

सौ टका सोना भी यहाँ खरा ना निकले
हर सुनहरा जर्रा मिटटी बेहिसाब रखता है

यहाँ पे अंधे नूर और गूंगे जुबान रखते हैं
आम आदमी भी  हुनर लाज़वाब रखता है

लौट जाओ सतयुग की आस रखने वालो
सच भी यहाँ झूठ का आफताब रखता है

पागल को ही यहाँ बस खुदा  मिला करते हैं
अक्ल वाला तो पत्थर का हिसाब  रखता है

भावार्थ
३१/१२/२०१५





मुझे नींद से जगा दिया...

मंजिल करीब थी और अपने करीब थे
दर्द जुदाई का विदा लेने ही वाला था
नूर-ए-खुदा का खुर्शीद सिराहने पर था 
तिलिस्म माया का टूटने ही वाला था

कि किसी ने मुझे नींद से जगा दिया...

भावार्थ
३१/१२/२०१५ 


नैया थक गयी हार

हो गए वो सब पार
नैया थक गयी हार

इस करवट कभी उस करवट
लहरों की छाती को थामे केवट
लेकर दो पतवार
नैया थक गयी हार

हो गए वो सब पार
नैया थक गयी हार

बूझे नदी में न कोई डगर
मंजिल दीसे सबको मगर
सोचत सब मझधार
नैया थक गयी हार

हो गए वो सब पार
नैया थक गयी हार

उतरे सब पर थाह न जानी
अपने मन की चाह न जानी
भूल भुलैया ये संसार
नैया थक गयी हार

हो गए वो सब पार
नैया थक गयी हार

भावार्थ
३०/१२/२०१५