Monday, August 31, 2015

गुमनाम हो कर भी नाम हो तो कोई बात है !!!

आगाज़ भर होने का जश्न मनाना क्या
जश्न गर अंजाम का हो तो कोई बात है

है गर सुकून तो सब खिलखिलाते हैं
दर्द में जो लब खिले तेरे तो कोई बात है

जिंदगी में तो सबकी मोहब्बत होती है
मौत के बाद भी इश्क़ रहे तो कोई बात है

यूँ तो जूनून रगो में सब लिए फिरते हैं
जो बहे लहू आँख से तेरे तो कोई बात है

हर बार मुझसे मिलने की कोई वजह थी
बेवजह  युही मिल जाओ तो कोई बात है

वफ़ा को वफ़ा मिलना भी कोई इश्क़ है
बेवफा से हो जो मोहब्बत तो कोई बात है

बदनाम हो कर नाम मिला तो क्या मिला
गुमनाम हो कर भी नाम हो तो कोई बात है

आगाज़ भर होने का जश्न मनाना कैसा
जश्न गर अंजाम का हो तो कोई बात है

भावार्थ 
३१/०८/२०१५ 



Wednesday, August 26, 2015

करार भी तेरा बेक़रार हो जाए

मेरे इश्क़ का  जुनूँ ऐसा है
करार भी तेरा बेक़रार हो जाए

मय की तासीर है इतनी
असर भी तेरा बेअसर हो जाए

मेरी नज़र इस तरह देखेगी
शर्म भी  तेरी बेशर्म हो जाए

कुछ बात तो है उसकी बात में
जुबान बड़ों की बेजुबान हो जाए

भावार्थ
२५/०८/२०१५




Tuesday, August 25, 2015

दर्पण देखा जब भी मैंने ..... इक परछाई सी पायी है !!!

दर्पण देखा जब भी मैंने
इक  परछाई सी पायी है
मेरे अक्स उजियारे  की
कालिख सी सूरत पायी है

कल की गठरी  है भारी
आगे बढ़ना है मुश्किल
खायिश तो एक चिंगारी है
इसकी  है न कोई मंजिल

जिसने चाही ये  मंजिल
उसने  आग  लगायी है
दर्पण देखा जब भी मैंने
इक  परछाई सी पायी है

जिंदगी है ये रोग कोढ़ का 
हर दिन  रिसता रहता  है 
मजबूर बड़ा लाचार है तू 
दो पाटों में पिसता रहता है 

जिसने ओढ़ा मौत का चोला 
उसने ही जिंदड़ी पायी है  
दर्पण देखा जब भी मैंने
इक  परछाई सी पायी है

वक़्त का लट्टू चलता है
और लोग बजाते है ताली
भर भर के रखते हैं मटके
फिर जाते हैं हो कर खाली

खाली रहा जो हर पल में
उसने ही जन्नत पायी है
दर्पण देखा जब भी मैंने
इक  परछाई सी पायी है

मेरे अक्स उजियारे  की
कालिख सी सूरत पायी है 


भावार्थ 
२४/०८/२०१५









Sunday, August 23, 2015

कुछ शाख दरख्तो पे ऐसी

कुछ शाख दरख्तो पे ऐसी
जो हैं मगर बेजान है सब
न फूलों की मदहोशी रही
न हरियाली का निशाँ है अब

भावार्थ



इस रक्त की कोई परछाई नहीं होती




इस रक्त की कोई परछाई नहीं होती
सुर्ख लाल रंग की कोई  स्याही नहीं होती

जुदा करने का चाहे करो जितने जतन 
अपनी है जो चीज़ वो फिर परायी नहीं होती

तिलिस्म का कोई आकार नहीं होता
इस जेहेन को तोलने  की कोई इकाई नहीं होती

एक वो जिंदगी है जो बस वफ़ा करती है
और ये मौत है जिससे कभी बेवफाई नहीं होती

दिया बाती से और चाँद आफताब से रोशन
हर उम्मीद की  चीज़ नूर-ए -इलाही नहीं होती


भावार्थ
२३/०८/२०१५




Saturday, August 15, 2015

ये कागज़ की नाव है

ये कागज़ की नाव है 
बड़ा ही तेज बहाव है 

तुम चलते रहो राही 
बड़ा दूर अभी गांव है

धुआं जो उठ रहा  है 
अभी गीला अलाव है 

मत रुको दरख़्त पे 
यहाँ धधकती छाँव है 

बहुत देर तक चलना है 
तेरा नन्हा सा पाँव है 

कतई इश्क़ नहीं है वो 
जो  इकतरफा लगाव है 

ये कागज़ की नाव है 
बड़ा ही तेज बहाव है 

भावार्थ 
१६/०८/२०१५ 





साँसों की कैद में है जिंदगी

उम्र  की  कैद  में है  जिंदगी
साँसों की  कैद  में है  जिंदगी

जिनसे है खुशियों की चाहतें
उनसे है मिलती हमें  आहते
अपनों की  कैद में है जिंदगी
साँसों  की  कैद में है  जिंदगी

खाब के कांटो में हम फंस रहे
दरिया- ए- उम्मीद में धंस रहे
सपनो  की  कैद  में है  जिंदगी
साँसों  की  कैद में  है  जिंदगी

कौन हूँ मैं कौन है मेरा खुदा
कौन है हो गया जिससे जुदा
निराकार की कैद में है जिंदगी
साँसों की  कैद में  है जिंदगी

उम्र  की  कैद  में है  जिंदगी
साँसों की  कैद  में है  जिंदगी

भावार्थ 
१५/०८/२०१६ 
" Freedom from chains of Human Psychology"
Happy Independence day !!!


Sunday, August 9, 2015

एक बैचैनी सी है हर पल

एक बैचैनी सी है हर पल
न जाने क्यूँ
शायद हौंसला कम है
और खाब कुछ ज्यादा
या फिर इरादा ही
शायद  उतना पुख्ता नहीं है
वरना इसकदर 
बेकरारी न सुलगती

एक बैचैनी सी है हर पल
न जाने क्यूँ
शायद दिल का जना  
जुबान कह नहीं पाती 
या फिर आशिक़ी अभी 
उस मकाम तक  नहीं पहुंची 
वरना तामीर-ए-इश्क़ 
हो ही जाती अपनी  

एक बैचैनी सी है हर पल
न जाने क्यूँ 
अजनबी भीड़ में शायद 
कोई अपना नहीं मिला 
या फिर तन्हाई की धुंध में 
कोई हमसफ़र नहीं दिखा 
वरना  इस हद तक 
तीरगी  कभी नहीं रही 

एक बैचैनी सी है हर पल
न जाने क्यूँ 

भावार्थ 
९/०८/२०१५  

Friday, August 7, 2015

ये जमीं ये मेरा आसमाँ

ये  जमीं ये मेरा आसमाँ
बड़ा  खूबसूरत है ये जहाँ
मेरी जिंदगी परवाज़ है
हो फ़िज़ा मेरी  मैं उड़ूँ जहाँ

ये  जमीं ये मेरा आसमाँ
बड़ा  खूबसूरत है ये जहाँ

कभी  धुप लिख के आसमाँ
हमने सुनहरी कर दिया
फिर  षूप बांध के पाँव में
हम उड़े हैं हवाओं में

ये  जमीं ये मेरा आसमाँ
बड़ा  खूबसूरत है ये जहाँ

कभी वक़्त उठा के सरो पे हम
और आग लेके परों  पे हम
कभी छाँव लेके हम कहीं
हम उड़ें जहाँ हवा नहीं

ये  जमीं ये मेरा आसमाँ
बड़ा  खूबसूरत है ये जहाँ

मेरी जिंदगी परवाज़ है
हो फ़िज़ा मेरी  मैं उड़ूँ जहाँ
ये  जमीं ये मेरा आसमाँ
बड़ा  खूबसूरत है ये जहाँ

गुलज़ार
Biography of APJ Kalam
https://www.youtube.com/watch?v=hBLa-D-MiVU

Sunday, August 2, 2015

हमसफ़र मिलते हैं मगर

हमसफ़र मिलते हैं मगर
कोई हमनवा नहीं मिलता
ढूँढो तो औरों के घर मिलते है
खुद का जहाँ नहीं मिलता

भावार्थ

गर हमसफ़र हो तो बस मय जैसा
जाम के बाद भी सुरूर तमाम रहता है
होश में रहूँ तो तेरा नाम छुपाता हूँ
मय के बाद बस तेरा ही नाम रहता है
 - भावार्थ