Monday, July 27, 2015

~ डॉ अब्दुल कलाम को भावभीनी श्रद्धांजलि ~

खुदा की  इबादत को अनाद शंख  दे गए तुम 
पाक आयतों में भी गीता का अंश  दे गए तुम 
जिस देश में आग लगाने पे तुले हैं  लोग वहां    
देशप्रेम की अलख "आग को पंख" दे गए तुम

भावार्थ

~ डॉ अब्दुल कलाम को भावभीनी श्रद्धांजलि ~
२७/०७/२०१५


Friday, July 24, 2015

बस यु ही बेवजह

हर चीज़ करने की एक  वजह  थी
शायद इसी से थक कर 
सोचा कुछ तो किया जाए
बस यु ही बेवजह

न मंजिल का ख्याल
न रास्ते की  परवाह
सुबह मैं  निकल गया  घर से
बस यु ही बेवजह

अपने दर्द को कुछ पल को भुला
अजनबी  को अपनेपन  से देखता
मैंने उसके दर्द को अपना लिया
बस यु ही बेवजह

स्कूल के बस्ते का बोझ ढोते
नन्हे  बचपन के साथ मैं
कुछ पल को खिलखिला लिया
बस यु ही बेवजह

जो अपनी  भूख के खातिर  था
मेरे पास जो भी  थोड़ा सा
मैंने एक बेजुबाँ को खिला दिया
बस यु ही बेवजह

किसी ने मन्नत मांगी  मजार पे
तो किसी ने संग से जन्नत चाही 
मैंने एक  बुजुर्ग के आगे सर को झुका दिया
बस यु ही बेवजह

हकीकत ये है जिंदगी की 'भावार्थ'
थक जाओगे जो किसी वजह से जीओगे
गर पानी  है उमंग तो जियो
बस यु ही बेवजह


भावार्थ
२५/०७/२०१५




Tuesday, July 14, 2015

है तेरा वजूद अब भी मेरे दिल की आहों में !!!

तेरी बाहों में सिमटा मेरा 
हर लम्हा गुज़र गया
रह गया बस तेरा अक्स निगाहों  में

उस मंजर पे जहाँ साहिल
समंदर से जा मिले
मिट गए तेर पैरों के निशाँ  रेत की राहों में

मेरी सुबह में न तेरी बातें रहीं
न वो रातों में तेरा सुरूर
मगर बिखरा है तेरा रंग बाकी इन हवाओं में

मेरी  साँसे कहें कि तू है यहीं
और सब कहते हैं कि तू अब न रही
है तेरा वजूद अब भी मेरे दिल की आहों में

भावार्थ