Tuesday, June 30, 2015

मुझको यकीं है सच कहती थी

मुझको यकीं है सच कहती थी
जो भी अम्मी कहती थी
जब मेरे बचपन के दिन थे
चाँद में परियां  रहती थी

एक ये दिन अपनों ने भी
हम से नाता तोड़ दिया
एक वो दिन जब पेड़ की साखें
बोझ हमारा सहती थी

जब मेरे बचपन के दिन थे
चाँद में पारियां रहती थी


एक दिन ये जब लाखों गम
और काल पड़ा है आंसूं का
एक वो दिन  जब एक जरा सी
बात पे नदियां  बहती थी

जब मेरे बचपन के दिन थे

चाँद में पारियां रहती थी

जावेद अख्तर 

Sunday, June 28, 2015

को नित नमन नित मनन






त्रिशूलधर  विनाशकारी  
विष पिए नीलकंठ धारी 
को नित नमन नित मनन 

त्रिनेत्र ओजस्वी का नृत्य 
भय विकृति और कुकृत्य 
का नित हनन नित हनन 

जटा मध्य जो सोम धरे 
अंग अंग जो भस्म  भरे 
हो नित शमन नित शमन  

योग मुद्रा समाधि  धारी  
त्रिकाल बसे भोला भंडारी 
का नित भजन नित भजन 


भावार्थ 
२८/०६/२०१५ 




  

Thursday, June 18, 2015

आज कल आप साथ चलते नहीं

आज कल आप साथ चलते नहीं
आज कल लोग हमसे जलते नहीं

उनको पत्थर भी  किस तरह कह दूँ
वो किसी तौर भी पिघलते नहीं

आज कल लोग हमसे जलते नहीं

शहरों शहरों हमारा  चर्चा है
और हम घर से अब  निकलते नहीं

उनको दुनिया कहेगी दीवाना
रुख बदलती है जो बदलती नहीं


जगजीत सिंह -



Saturday, June 6, 2015

तू जरा इंतज़ार तो कर



तू जरा इंतज़ार तो कर
मैं जरूर लौटूंगा तेरे आगोश में

मत पौंछ आँखों से काजल की लकीर ये काली
मत मिटा तू लबो पर बिखेरी  सुर्ख़ ये लाली

तू जरा  श्रृंगार  तो कर
तू जरा इंतज़ार तो कर
मैं जरूर लौटूंगा तेरे आगोश में

तेरी हंसी में छुपा जो गम है वो मेरी याद है
पा कर सबकुछ  जो कम  है वो मेरी याद है

जरा सा ऐतबार तो कर
तू जरा इंतज़ार तो कर
मैं जरूर लौटूंगा तेरे आगोश में

मेरे दर्द को अलफ़ाज़ बन पड़ना है नसीब
तेरे दर्द को आँखों से फट पड़ना है नसीब

तू दर्द का इज़हार तो कर
तू  जरा इंतज़ार तो  कर
मैं जरूर लौटूंगा तेरे आगोश में

तू जरा इंतज़ार तो कर
मैं जरूर लौटूंगा तेरे आगोश में
होके बेसब्र टूटूंगा तेरे आगोश में

भावार्थ
७/६/२०१५