Saturday, April 25, 2015

खौफ में जीते है दर्द में मरते यहां

खौफ में जीते है दर्द में मरते यहां
अजब सी है ये जिंदगी की दास्ताँ

उमड़ पड़े दरिया तो यहाँ दर्द बहे
फट  पड़े ये धरती तो यहाँ दर्द रहे
महफूज़ सूरत नहीं नज़र में यहाँ

खौफ में जीते है दर्द में मरते यहां
अजब सी है ये जिंदगी की दास्ताँ

लाश नहीं यहाँ तो खाब दफ़न हैं
धरा सेज और आसमाँ  कफ़न हैं
इन्सां को गिद्ध हैं नोचें फिरते यहाँ

खौफ में जीते है दर्द में मरते यहां
अजब सी है ये जिंदगी की दास्ताँ

रूह बेचैन जिस्म में बेकरारी है
उम्र हमने इस तरह  गुज़ारी  है
जिंदगी मौत में है क्या फर्क यहाँ 

खौफ में जीते है दर्द में मरते यहां
अजब सी है ये जिंदगी की दास्ताँ

भावार्थ
२५/०४/२०१४
नेपाल त्रासदी को समर्पित… 

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