Tuesday, March 3, 2015

हो जाऊं चुप जो अगर लफ्ज़ बयाँ हो जाएं

हो जाऊं जो खामोश अगर ये लफ्ज़ बयाँ हो जाएँ
हँस लूँ जरा जो तेरे संग तो ये अश्क़ बयाँ हो जाएं

चलता रहूँ तो छाले  मेरे चुभते  नहीं  मुझको
थम जो जाऊं अगर तो मेरे  दर्द बयाँ हो जाएं

जब तक हैं अजनबी हम तो मोहब्बत जिन्दा है
नज़रो से मिल गयीं जो नज़र तो इश्क़ बयाँ हो जाएं

तनहा हूँ तो महफूज है मेरी जिंदगानी की ये किताब
घुल मिल जाऊं जो दुनिया में इसके हर्फ़ बयाँ  हो जाएँ

हो जाऊं जो खामोश अगर ये लफ्ज़ बयाँ हो जाएँ
हँस लूँ जरा जो तेरे संग तो ये अश्क़ बयाँ हो जाएं


भावार्थ






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