Sunday, January 4, 2015

है एक समंदर बाहर जो

है एक समंदर बाहर जो 
है एक समंदर भीतर भी 

मारा फिरे है भीड़ में तू 
करता फिरे है आडम्बर 
मार के खुद के कोड़े तू 
तू ढूढ़ रहा है पैगम्बर 

है एक पैगम्बर बाहर जो  
है एक पैगम्बर भीतर भी

है एक समंदर बाहर जो.… 
है एक समंदर भीतर भी.… 

कैसे सम्भालूँ मैं खुद को 
पल पल भवर उमड़ते हैं 
जितना संभालू इस दिल को 
उतने ही बवंडर बढ़ते हैं 

है एक बवंडर बाहर जो  
है एक बवंडर भीतर भी 

है एक समंदर बाहर जो.… 
है एक समंदर भीतर भी.... 

जाकर मक्का मदीना तू 
शैतान पे  पत्थर मारे  है 
शैतान है  जो तेरे भीतर 
हर रोज तू  उससे हारे है

है एक मंथन ऐसा बाहर जो 
है एक मंथन वैसा भीतर भी 

है एक समंदर बाहर जो.…
है एक समंदर भीतर भी.… 

भावार्थ 
४ जनवरी २०१५ 

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 







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