Saturday, January 17, 2015

खुदा तोय कैसे बूझूँ मैं

खुदा तोय कैसे बूझूँ मैं
खुदा तोय कैसे बूझूँ मैं

है  तेरी ये पूरी ही कायनात
क्यों तेरी फिर भी कोई जगह नहीं
हर शय में है गर मौजूद तू
क्यों तू है फिर भी किसी नज़र नहीं

खुदा तोय कैसे बूझूँ मैं
खुदा तोय कैसे बूझूँ मैं

जो है नमाज़ों की इबादात  में  बसा
क्यों दिलों में तू  है समाता  नहीं 
जो तू है आयतों के अलफ़ाज़ में 
क्योँ  तू लबों पे फिर नज़र आता नहीं

खुदा तोय कैसे बूझूँ मैं
खुदा तोय कैसे बूझूँ मैं

इन बाज़ारों में जो ढूढ़ा तुझे
बस तेरा नाम बिकता नज़र आया
इन पहारों में  ढूढ़ा तुझे
फ़कीर तेरे नाम जपता नज़र आया

खुदा तोय कैसे बूझूँ मैं
खुदा तोय कैसे बूझूँ मैं


भावार्थ











Thursday, January 8, 2015

मौत के आगे है खड़ी जिंदगी तू देख

मौत से ख़ामोशी एक चीखें अनेक
मौत के आगे है खड़ी जिंदगी तू देख

जो चुपचाप है वो है खौफ में
जो बेबाक है  वो है जोश में
बेहोशी में घुला हुआ है होश तू देख
मौत के आगे है खड़ी जिंदगी तू देख

भावार्थ














Sunday, January 4, 2015

है एक समंदर बाहर जो

है एक समंदर बाहर जो 
है एक समंदर भीतर भी 

मारा फिरे है भीड़ में तू 
करता फिरे है आडम्बर 
मार के खुद के कोड़े तू 
तू ढूढ़ रहा है पैगम्बर 

है एक पैगम्बर बाहर जो  
है एक पैगम्बर भीतर भी

है एक समंदर बाहर जो.… 
है एक समंदर भीतर भी.… 

कैसे सम्भालूँ मैं खुद को 
पल पल भवर उमड़ते हैं 
जितना संभालू इस दिल को 
उतने ही बवंडर बढ़ते हैं 

है एक बवंडर बाहर जो  
है एक बवंडर भीतर भी 

है एक समंदर बाहर जो.… 
है एक समंदर भीतर भी.... 

जाकर मक्का मदीना तू 
शैतान पे  पत्थर मारे  है 
शैतान है  जो तेरे भीतर 
हर रोज तू  उससे हारे है

है एक मंथन ऐसा बाहर जो 
है एक मंथन वैसा भीतर भी 

है एक समंदर बाहर जो.…
है एक समंदर भीतर भी.… 

भावार्थ 
४ जनवरी २०१५ 

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं