Saturday, August 30, 2014

मेरे करार में नसीब बेकरारी है

इस मकान में घर की तलाश जारी है
मेरे करार में  नसीब  बेकरारी है 

इंसान का चेहरा और दिल संग सा लिए  
मेरे हमनवाज़ों की क्या अदाकारी है

मेरे करार में  नसीब  बेकरारी है

रिश्ते तोड़ के जीत जाना  तो आसान था  
बचाने को रिश्ते हमने दिलकी बाज़ी हारी है

मेरे करार में  नसीब  बेकरारी है

जिस्म का मिलना भी कोई मिलना है
रूह से रूह की जो अगर पर्दागारी  है

मेरे करार में  नसीब  बेकरारी है

रहकर जिन्दा  न हमें मिल सका सुकू
मौत को अब मयस्सर जिंदगी हमारी है

मेरे करार में  नसीब  बेकरारी है

इस मकान में घर की तलाश जारी है


मेरे करार में  नसीब  बेकरारी है 

भावार्थ











Wednesday, August 20, 2014

मंजिलें क्या है रास्ता क्या है

मंजिलें क्या है रास्ता क्या है
हौंसला हो तो फासला क्या है

वो सजा दे कर दूर जा बैठा
इससे  पूछो मेरी सजा क्या है

जब भी चाहेगा छीन लेगा वो
सब उसीका है आपका क्या है

तुम हमारे करीब बैठे हो
अब दुआ कैसी और दवा क्या है

चांदनी आज किसलिए कम है
चाँद की आँख में चुभा क्या है

मंजिलें क्या है रास्ता क्या है
हौंसला हो तो फासला क्या है

आलोक श्रीवास्तव 

Saturday, August 16, 2014

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गयी

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गयी 
दोनों को एक नज़र में रज़ामंद कर गयी 
शक हो गया है सीना खुशा लज़्ज़त-ए- फरग 
तकलीफ-ए-पर्दादारी -ए- जख्म-ए-जिगर गयी  
वो वादा-ए- शबनम की सरमस्तियां कहाँ 
उठिए बस अब के लज़्ज़त-ए खाब-ए-शहर गयी 
उड़ती फिरे है ख़ाक मेरी कु-ए-यार में 
बारे आब आई हवा हवस-ए-बल ओ पर गयी 
देखो तो दिल फरेबी-ए-अंदाज़-ए- नक्श-ए- पा 
मौज-ए-खैराम-ए- यार भी क्या गुल कुतर गयी 

मिर्ज़ा ग़ालिब 

यहाँ की मिटटी में दफ़न ग़ालिब है

क्यूँ ओढ़ती  है दर्द ग़ज़ल मेरी
तुम्हार पूछना भी वाजिब है
क्या करूँ मेरा मुल्क है कुछ ऐसा 
यहाँ की मिटटी में दफ़न ग़ालिब है

भावार्थ






मौत मेरी उजाला हो

जींद चाहे अँधेरा हो
मौत मेरी उजाला हो

ठुकरा दे मुझे यादाश्त
जेहेन ने बस संभाला हो


बहरूपिया है ये वक़्त
क्या इसपर एतबार आये
खुली रहे मेरी आँखें
जो नींद आये तो एकबार आये

कैसे करू गुरूर-ए-वजूद
जिसे उसने माटी में ढाला हो



जींद चाहे अँधेरा हो
मौत मेरी उजाला हो

ठुकरा दे मुझे यादाश्त
जेहेन ने बस संभाला हो


काठी को खा जाएगा 
एक दिन मौत का दीमक 
जगमगाता सा तू जुगनू 
बुझ जाएगा बन के दीपक 

बन जायेगा वो ही रकीब 
जिसे दोस्त सा तूने पाला हो 


जींद चाहे अँधेरा हो
मौत मेरी उजाला हो 

ठुकरा दे मुझे यादाश्त
जेहेन ने बस संभाला हो 


भावार्थ 








Friday, August 15, 2014

वही इश्क़

वही शाम
वही जाम
और वही तन्हाई
जैसे मिल बैठें हों तीन यार
गम-ए- इश्क़ भुलाने को


वही इश्क़
वही अश्क़
वही बेवफाई
कुछ भी तो नया नहीं
दास्ताँ-ए-इश्क़ सुनाने को

वही साज
वही आवाज
वही बेहद रुस्वाई
चलो जज्बात होठों तक लाएं
बुलाया है दर्द गुनगुनाने को


भावार्थ