Friday, October 17, 2014

इस कलिजुग में कैसे इंसान भरे हैं

शिवालय है खाली मदिरालय भरे हैं 
इस कलिजुग में कैसे इंसान भरे हैं

नशे में नचनियों पे जो हैं पैसे उड़ाते
बेबस भिखारी से वो हैं नज़रें बचाते

माया के जंजाल में ये आ पड़े हैं
इस कलिजुग में कैसे इंसान भरे हैं

माँ बाप के जो न बन सके आस हैं
अजनबी दोस्तों के वो बने ख़ास हैं

रिश्तो को बस बोझ  माने पड़े हैं
इस कलिजुग में कैसे इंसान भरे हैं

कथनी से करनी तक यहाँ सब झूठ है
आंसू से लहू तक की यहाँ सब लूट है

मत खोल लब यहाँ सब गद्दार भरे हैं
इस कलिजुग में कैसे इंसान भरे हैं

शिवालय है खाली मदिरालय भरे हैं 
इस कलिजुग में कैसे इंसान भरे हैं

भावार्थ 





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