Friday, August 15, 2014

वही इश्क़

वही शाम
वही जाम
और वही तन्हाई
जैसे मिल बैठें हों तीन यार
गम-ए- इश्क़ भुलाने को


वही इश्क़
वही अश्क़
वही बेवफाई
कुछ भी तो नया नहीं
दास्ताँ-ए-इश्क़ सुनाने को

वही साज
वही आवाज
वही बेहद रुस्वाई
चलो जज्बात होठों तक लाएं
बुलाया है दर्द गुनगुनाने को


भावार्थ

















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