Sunday, March 9, 2014

अब बता भी दो

अब बता भी दो
अधबुने अफ़साने जो तूने बनाये  थे
तन्हाई कि स्याही में डूबकर
वो अधूरे खाब जो तूने सजाये थे
अब बता भी दो

अब बता भी दो
सुर्ख आँखों में क्यों जागती है रातें
अजनबी के अनछुए एहसास को
सोच सोच कर क्यूँ कांपती है रातें
अब बता भी दो

अब बता भी दो
दर्द कब तक लहू बन कर बहेगा
रिवाज़ों के सांचे में खामोश
कब वजूद  तेरा उठ  कर कहेगा
अब बता भी दो

अब बता भी दो
कब तू जिस्म से उठ कर भी जानी जायेगी
कब दोगलेपन  का चस्मा उतरेगा
दुनिया में कब तेरी हस्ती भी मानी जायेगी
अब बता भी दो

~ भावार्थ ~
Happy Women's Day
8/03/2014











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