Monday, March 31, 2014

तरक्की कहते हैं

गाँव में छोड़ आये जो  हज़ार गज़ की  बुजुर्गों कि हवेली
वो शहर में सौ गज़ में रहने को खुद की तरक्की कहते हैं.…

इतने दूर थे कि माँ के दाग में भी शामिल न हो पाये
वो विदेशों में जाकर रहने को खुद की  तरक्की कहते हैं

~ भावार्थ ~











Sunday, March 23, 2014

चार दिवस युही कट जायेंगे

चार दिवस युही कट जायेंगे
सुख दुःख राग दुवेश तू  छोड़

कोई  है कछुआ कोई खरा है
अपनी खूबी से हर कोई भरा है
क्यों करते एक दूजे से होड़

चार दिवस युही कट जायेंगे
सुख दुःख राग दुवेश तू  छोड़

पल के रिश्ते पल के नाते
अपनी डगर हम सब हैं जाते
ये दुनिया एक बस कि तरह
जो साथ चले उतरे  अपने मोड़

चार दिवस युही कट जायेंगे
सुख दुःख राग दुवेश तू  छोड़

स्वांस की  तरह माया बदले 
स्वांग  की तरह काया  बदले 
जर्रा जर्रा नशवर दुनिया 
भीतर भीतर अपनी दृष्टि मोड़ 

चार दिवस युही कट जायेंगे
सुख दुःख राग दुवेश तू  छोड़ 

~ भावार्थ ~ 
२३ मार्च २०१४ 





Tuesday, March 11, 2014

बस अंदाज़ बदलते रहते हैं

हैं हर्फ़ वही अलफ़ाज़ वही
बस फनकार बदलते रहते हैं
दर्द-ए-जींद को कहने के
बस अंदाज़ बदलते रहते हैं

नदिया वही बहाव वही
है पतवार वही और  नाव वही
अथाह सा बहता सागर है वही
बस अफ़कार  बदलते रहते हैं

मुझको बुलाती तेरी याद वही  
उस गम को भुलाती  रात वही 
दर्द-ए-वफ़ा कि सौगात वही 
बस किस्सा-ए-यार बदलते रहते हैं 

उसकी शर्म वही उसका ताव वही 
है दोनों के भीतर जलता अलाव वही 
है इश्क़ का आगाज़ वही अंज़ाम वही 
बस किरदार बदलते रहते हैं 

हैं हर्फ़ वही अलफ़ाज़ वही
बस फनकार बदलते रहते हैं
दर्द-ए-जींद को कहने के
बस अंदाज़ बदलते रहते हैं

भावार्थ 
११-मार्च-२०१४ 








Sunday, March 9, 2014

अब बता भी दो

अब बता भी दो
अधबुने अफ़साने जो तूने बनाये  थे
तन्हाई कि स्याही में डूबकर
वो अधूरे खाब जो तूने सजाये थे
अब बता भी दो

अब बता भी दो
सुर्ख आँखों में क्यों जागती है रातें
अजनबी के अनछुए एहसास को
सोच सोच कर क्यूँ कांपती है रातें
अब बता भी दो

अब बता भी दो
दर्द कब तक लहू बन कर बहेगा
रिवाज़ों के सांचे में खामोश
कब वजूद  तेरा उठ  कर कहेगा
अब बता भी दो

अब बता भी दो
कब तू जिस्म से उठ कर भी जानी जायेगी
कब दोगलेपन  का चस्मा उतरेगा
दुनिया में कब तेरी हस्ती भी मानी जायेगी
अब बता भी दो

~ भावार्थ ~
Happy Women's Day
8/03/2014











Saturday, March 1, 2014

पँख बिना अब उड़ना सिखा दे

पँख बिना अब उड़ना सिखा दे
कांटे में दे सुकून ओ मौला
तेरी रहमत की चादर उढ़ा दे
थाम ले तू मेरा जूनून ओ मौला

चमकते चेहरे और काली रूह
ये काग भी करता मीठी कूह
भरम मिटा मुझे मुझ से मिला दे
अपना करम तू दिखा ओ मौला

पँख बिना अब उड़ना सिखा दे
कांटे में दे सुकून ओ मौला

भाग पे कालिख लगी हुई है
मत  पे माया चढ़ी हुई है
खाबो से मेरे अँधियारा मिटा दे
नूर-ए-मुनव्वर जगा ओ मौला

पँख बिना अब उड़ना सिखा दे
कांटे में दे सुकून ओ मौला

~ भावार्थ ~ 
२ मार्च २०१४