Saturday, February 1, 2014

कोहरा ओढ़े सुबह आयी

कोहरा ओढ़े सुबह आयी
इन पेड़ों के दरमियान
मद्धम हवा बहने लगी
सिरहन बिखेरती यहाँ
रास्ते खामोश हो गए
सुकून में है आसमान

ठिठुर रही है साँसे
जिस्म के इस अलाव में
धड़क रहे दिल धीमे से
बोझिल हुई पलके खाव में
जुबाँ  को प्यास नहीं
जेहेन भी है मीठे तनाव में

गर सुकून बाकी है कहीं
तो बस प्यार के आगोश में
इक चाय कि प्याली  से
कहीं आते  हैं जनाब होश में
गर्माता है  लहू और अरमाँ
चुम्बक बन जाते है जोश में

~ भावार्थ  ~









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