Tuesday, December 24, 2013

अजनबी हूँ इस अजनबी शहर में

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में
तलाश अपनेपन कि यहाँ  जारी है

होश को होश नहीं मय के आगोश में
ख़तम न होने वाली ये बेकरारी है

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में …

हर रात सी लेता हूँ मैं चाक दिल के
सुबह फिर चोट खाने की  तैयारी है

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में …

मेरा वजूद तो  बंजारों सा है
फिर किसी और मकाम की बारी है

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में …

रखना पड़ता है निवालों का हिसाब
इस मुल्क में इसकदर बेरोजगारी है

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में …

इस कदर हैं बदहाल है मेरा नसीब
कमी पैसों कि मेरी खाईश पे भारी है

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में …

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में
तलाश अपनेपन कि यहाँ  जारी है

~ भावार्थ~ 
२५/१२/२०१३ 

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