Sunday, November 24, 2013

आवारा !!!

वीराने शहर में फिरती
शख्शियत मेरी बनकर आवारा
अपने नसीब का  खयाल फ़िज़ूल है
जब वक़्त हो  खुद का आवारा

तन्हाई की दुशाला ओढ़े सड़को के सीने पे
मेरे बेहोश लड़खड़ाते कदम मंजिल को
बढ़ रहे हैं बनकर आवारा
अपने नसीब का का खयाल फ़िज़ूल है
जब वक़्त हो  खुद का आवारा

रास्तो के कंधे पे चमकते लेम्पपोस्ट 
जगमगाते हैं कभी कभी जैसे 
मदहोश फिरते जुगनू आवारा 
अपने नसीब का का खयाल फ़िज़ूल है
जब वक़्त हो  खुद का आवारा

भावार्थ
२४ नवंबर २०१३ 









नसीब नहीं

गाँव !!!

कुँए कि मुडगेरी पे बैठा हूँ
पेट भर क्या ओख भर पानी  नसीब नहीं

कोल्हू थक गया बैलों से पहले
फिर भी गुड को मिठास नसीब नहीं

मुझ लुहार के  घर में भट्टी है
ढकने को छत क्या छप्पर नसीब नहीं

अब सिर्फ गाव में मानुष बचे हैं
भूख मिटाने को बटेर क्या अनाज नसीब नहीं

~  भावार्थ ~
२४ नवंबर २०१३ 

Saturday, November 23, 2013

एक जूनून सा सवार रखना !!!

एक जूनून सा सवार रखना
खुद से लड़ने का दोस्तों
गर सम्भलना है तो ...

बड़े फितूर हैं इस जेहेन में
बेढंगे से मिज़ाज़ हैं इसके

पग जरा समझ कर रखना
इस रस्ते पे चलने को दोस्तों
मंजिल तक पहुंचना है तो ...

एक जूनून सा सवार रखना
खुद से लड़ने का दोस्तों
गर सम्भलना है तो ...

लौट लौट कर अँधेरा आएगा
तेरा हौसला भी तुझे डराएगा

फ़िक्र सिर्फ उस "एक" कि रख
इस भवर से तरने को दोस्तों
दर्द से उबरना है तो

एक जूनून सा सवार रखना
खुद से लड़ने का दोस्तों
गर सम्भलना है तो ...

भावार्थ