Saturday, October 19, 2013

कलियुग में बड़ी बैचैनी है

कलियुग में बड़ी बचैनी है

हकीकत और खाब में बड़ी दूरी है
भीड़ में घुटना तो आज मजबूरी है
नशा करना अब जीने के लिए जरूरी है

कलियुग में बड़ी बैचैनी है

क्यों कमाने का ढोंग करते जाते हैं
उम्र की दराजों में काम भरते जाते हैं
रिश्तों में बेइंतहा दूरियां करते जाते  हैं

कलियुग में बड़ी बैचैनी है

पहले तो खिलोने में ख़ुशी को समझा
फिर हमसफ़र में "खिलौना" समझा
खिलौना खुद हूँ ये आज जाकर समझा

कलियुग में बड़ी बैचैनी है

जब कार और घर का सपना देखा मैंने
बच्चो  के  साथ शाम को खोया मैंने
त्यौहार को माँ से दूर हो कर रोया मैंने

कलियुग में बड़ी बैचैनी है

कुछ पल को माँ की मैहर मिल जाए
पापा के कंधे पे मेले की सैर  मिल जाए
कुछ पुराने दोस्तों की ख़ैर मिल जाए

कलियुग में बड़ी बैचैनी है

~ भावार्थ ~  

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