Sunday, September 8, 2013

दर्द के आभास को भांपता सा है

वो बच्चा अँधेरे से झांकता सा है
हर एक  रिश्ते से काँपता सा है
मासूमियत अभी पनपी भी नहीं
दर्द के आभास को भांपता सा है

हर शख्स उसे सहेली सा लगे
हर लफ्ज़ उसे पहेली सा लगे
नहीं जानती  हैवानियत क्या है
सितम भी उसे अठ्केली सा लगे

जो भी बड़े करते ऐसा हैं क्यों करते हैं
बहला के फुसला के हमें क्यों करते हैं
खूबसूरत है जिंदगी माँ कहती है
उसे ये ऐसा करके गन्दा क्यों करते हैं

भावार्थ

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