Tuesday, August 27, 2013

~ सरफरोशी ~

~ सरफरोशी ~

बेहोश थे कुछ वक़्त को
इस देश के नोजवाँ
होश  में हम  आगए
तू जाग जा हुक्मरान

रक्त की आंधिया
अब थम जायेंगी
मजहबी झाकियाँ
न अब चल पाएंगी

रात है ढलने को
न बन पाये कारवाँ
होश  में हम  आगए
तू जाग जा हुक्मरान

चेहरे झूठ के लिए 
ओढ़ बैठे है जो हिजाब
खौफ जो है बो रहे 
होने चाहिए बेनकाब 

धुरी है ये बदल रही 
बदल रहा है ये जहाँ 
होश  में हम  आगए
तू जाग जा हुक्मरान

दर्द को दर्द से
सीचते रहे हो तुम 
भुखमरी की आंच में 
खीचते रहे हो तुम 

अण नहीं घर नहीं 
वो भी आ गए है यहाँ 
होश  में हम  आगए
तू जाग जा हुक्मरान

बेहोश थे कुछ वक़्त को
इस देश के नोजवाँ
होश  में हम  आगए
तू जाग जा हुक्मरान

भावार्थ  

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