Friday, March 8, 2013

इकबाल अशर ...

कैसी तरतीब से कागज़ पे गिरे हैं आसूँ ...
एक भूली हुई तस्वीर उभर आई है

उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से
वो दिल जो बाज़ न आये फरेब खाने से

वो शखस एक ही लम्हे में टूट-फुट गया
जिसे तराश रहा था में एक ज़माने  से

रुकी रुकी से नज़र आ रही है नब्ज़-इ-हयात
ये कौन उठ के गया है मरे सरहाने से

न जाने कितने चरागों को मिल गयी शोहरत
एक आफ़ताब के बे-वक़्त  डूब जाने से

उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे जिसके मुस्कुराने से

ठहरी ठहरी तबियत में रवानी आई
आज फिर याद मोहब्बत की कहनी आई

आज फिर नींद को आँख से बिचार के देखा
आज फिर याद कोई चोट पुराणी आई

मुद्दतों बाद चला उन पर हमारा जादू
मुदात्तो बाद हमें बात बनानी आई

मुद्दतो बाद पशेमान हुआ दरिया हमसे
मुद्दतों बाद हमें प्यास छुपानी आई

मुद्दतों बाद मयस्सर हु माँ का आँचल
मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई

इतनी आसानी से नहीं मिलती फन की दौलत
ढल गयी उम्र तो गजलो पे जवानी आई ...

इकबाल अशर ...


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