Thursday, August 9, 2012

मैं इस उम्मीद पे डूबा की तू बचा लेगा ...

मैं इस उम्मीद पे डूबा की तू बचा लेगा ...
इससे बढ़ कर तू मेरा इम्तेहान क्या लेगा...

में बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा ...
कोई चराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा...

अब उसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा...

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए...
जो बे अमल हो वो बदला किसी से क्या लेगा...

अब उसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा...

में उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे...
लकीर हाथ की अपनी वो सब जला लेगा...

अब उसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा...

हज़ार तोड़ के आ जाऊं उससे रिश्ता वसीम ...
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा...

वसीम बरेलवी...

No comments: