Friday, June 22, 2012

जूनून-ए मर्दा !!!

वो पड़ी धुल को भी एक गुबार बनाएगा...
नन्हे दिए को आंधियों में भी जलाएगा ...
हथेली पे सरसों भी नहीं उगती यु तो...
वो उन्ही लकीरों से सल्तनत बनाएगा...

कोई तो पलक उठाओ कोई तो नज़र फेरो...
कोई तो लब से बोलो कोई तो अधर उकेरो...
सच को सच नहीं कह सकते तो मुर्दा हो...
रगों में बहते लहू आँखों से भर भर बिखेरो...

भावार्थ

Saturday, June 16, 2012

मैं संग सा हूँ जो तेरे संग हूँ...

मैं संग सा हूँ जो तेरे संग हूँ...
रेत सा हूँ जो न तेरे संग हूँ ...

धनुष इन्द्र सा है मेरा जहाँ...
पानी सा हूँ जो न तेरे रंग हूँ ...

दिल की धड़कन तेरी छुवन है...
जिन्दा लाश हूँ जो न तेर अंग हूँ...

भावार्थ...

Sunday, June 10, 2012

कबीर के दोहे

दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय...
सो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे का होए...

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोय...
औरों को शीतल करे आपहु शीतल होए...

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर...
पंची को छाया नहीं फल लागे अति दूर...

दुर्लभ मानस जन्म है होए  न दूजी बार...
पक्का फल जो गिर पड़ा लगे न दूजी बार...

मांगन मरण समान है मत कोई मांगो भीख..
मांगन से मरना भला यही सत गुरु की सीख..

काशी काबा एक है एक हैं राम रहीम...
मैदा एक पकवान बहुत बैठ कबीरा घीम...

अच्छे दिन पीछे गए हरी से किया न मेत ..
अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत...

~ कबीर ~








कबीर

माटी कहे कुम्हार से तू क्या रोंधे मोय ..
एक दिन ऐसा आएगा में रोधुंगी तोय ...

बुरा जो देखन में चला बुरा न मिलया  कोय...
जो मन देखा आपना मुझसा बुरा न कोय...

भला हुआ मेरी मटकी फूट गयी...
पनियां भरण से में अब छूट गयी...

ये तो घर है प्रेम का खाला का घर नाहीं...
सीश उतारे भू धरे तब बैठे घर माहीं....

हमन हैं इश्क मस्ताना हमन को हुशारी क्या...
रहा आजदी या जग से हमन दुनिया से यारी क्या...

कहना था को कह दिया अब कुछ कहा न जाय...
एक गया जो जा रहा दरिया लहर  समाय ..

हंस हंस कुंठ न पाया जिन पाया तिन रोय ...
हांसी खेल पिया मिले कौन सुहागन रोय...

जाको रखो सैयां माएर सके न कोय।..
बाल न बांका कर सके जो जग बैरी होय...

सुखिया  सब संसार है खाये और सोय..
दुखिया दास कबीर है जागे और रोय ...


कबीर

Friday, June 8, 2012

सदी से इंतज़ार था जिसका वो पल में गुज़र गया...

सदी से इंतज़ार था जिसका वो पल में गुज़र गया...
जेहें का उफनता दरिया एक  लम्हे में उतर गया...

आँखों ने रोका, इशारो ने  समझाया बहुत जिसे...
बड़ा शातिर था  अजनबी  वो दिल में उतर गया...

सांस से सांस बोलती रही गूंगे की तरह लम्हे को...
न जाने अल्फाज बुनने का वो हुनर किधर गया...

सदी से इंतज़ार था जिसका वो पल में गुज़र गया...
जेहें का उफनता दरिया एक लम्हे में उतर गया...

भावार्थ...