Saturday, April 7, 2012

और चाहिए फ़राज़ तुझे कितनी मोहब्बतें...

उसने सुकूत-इ-शब् में भी अपना पयाम रख दिया...
हिज्र की रात बाम पर माह-ए-तमाम रख दिया...

आमद-ए-दोस्त की भी कूए वफ़ा में आम थी...
मैंने भी  भी चराग सा दिल सरे-ए-शाम रख दिया...

शिद्दत-ए-त्रिष्णगी में भी गैरत-ए-मयकशी रही...
उसने जो फेर ली नज़र मैंने भी जाम रख दिया...

देखो ये मेरे खाब थे देखो ये मेरे जख्म है..
मैंने तो सब हिसाब-ए-जाँ बस सरेआम रख दिया...

उसने नज़र नज़र में ही ऐसे भले सुखन कहे...
मैंने तो उसके पाँव में सारा कलाम रख दिया...

और चाहिए फ़राज़ तुझे कितनी मोहब्बतें...
माओं ने तीरे नाम पे बच्चों का नाम रख दिया...


अहमद फ़राज़ !!!

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