Monday, March 12, 2012

वो हमसफ़र था !!!

वो हमसफ़र था मगर उससे हम-नवाई न थी...
धुप छाव का आलम रहा मगर जुदाई न थी...

कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं  रहे...
जब तक हमारे रहे वो हम नहीं रहे...
अदावतें थी तगाफुल था रंजिशें थी मगर...
बिछड़ने वाले में सब कुछ था बेवफाई न थी...

वो हमसफ़र था मगर उससे हम-नवाई न थी...

धुप छाव का आलम रहा मगर जुदाई न थी...

बिछड़ते वक़्त उन आखों में थी हमारी ग़ज़ल...
ग़ज़ल वो भी जो अभी किसी को सुनाई न थी...

वो हमसफ़र था मगर उससे हम-नवाई न थी...
धुप छाव का आलम रहा मगर जुदाई न थी...
काज़ल डारूं किरकिराए सुरमा सहा न जाए...
जिन नैनं में पिय बसें कोई और न समय...
किसे  पुकार रहा था डूबता रहा दिन...
सदा तो आई थी लेकिन कोई दुहाई न थी...

वो हमसफ़र था मगर उससे हम-नवाई न थी...
धुप छाव का आलम रहा मगर जुदाई न थी...

कभी ये हाल कि दोनों में यक्दिली थी नसीर...
कभी ये मरहला कि आशानाई न थी...

वो हमसफ़र था मगर उससे हम-नवाई न थी...

धुप छाव का आलम रहा मगर जुदाई न थी...

नसीर तुराबी   !!!


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