Wednesday, March 28, 2012

उसे समझा अपना हमने...

उसने दिल को जो लगाया तो उसे समझा अपना हमने...
हंस के जो हाथ बढाया तो उसे समझा अपना हमने...

बोझिल हुई आँखों ने सुनी उस पे गुजरी हुई ...
हाल-ए- दिल जो बताया तो उसे समझा अपना हमने...

कदमो में हुई हल चल तो मंजिल हुई नसीब...
फिर रस्ता जो बन आया तो उसे समझा अपना हमने...

हाल हुआ बेहाल जब  उस अजनबी से मिली नज़र...
दीवाना जो नाम पाया तो उसे समझा अपना हमने...

माथे पे लकीरों का नहीं निशाँ, है हथेली भी खाली...
खुदा की जो पड़ी नज़र  तो उसे समझा अपना हमने...

दुनिया की बेचैन फिजाओं में रही बेकल सी रूह मेरी....
बँजर जेहेन में सुखन-ए-लहर को समझा अपना हमने...

बाज़ार सजे हैं बिकने को आज फिर इस शाम...
खरीददारों ने लगाया जो भाव उसे समझा अपना हमने...

उसने दिल को जो लगाया तो उसे समझा अपना हमने...
हंस के जो हाथ बढाया तो उसे समझा अपना हमने...

भावार्थ...  

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